सोमवार, 27 जुलाई 2020

आवरण चित्र: कागज की नाव - सुरेन्द्र मोहन पाठक


कागज की नाव - सुरेन्द्र मोहन पाठक

कागज की नाव सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखा गया एक अपराध गल्प है। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का नाम किसी किताब से जुड़ा हो तो यह लगभग तय होता है कि उपन्यास अपराध गल्प होगा। यह संस्करण वेस्टलैंड द्वारा प्रकाशित किया हुआ है। 


अगर पुस्तक के कवर की बात करें तो व्यक्तिगत तौर पर पहली नजर में इसने मेरा ध्यान इतना आकर्षित नहीं किया था। यह उन आवरणों से अलग है जैसा कि हम अक्सर अपराध गल्प की किताबों में देखते आये हैं। कवर का शीर्षक कागज की नाव है जो कि एक पीले गोले जैसी चीज पर लिखा हुआ है। इस गोले से रोशनी की किरणे निकल रही हैं जो कि कुर्सी पर बंधे व्यक्ति पर भी पड़ रही है। ऐसा लग रहा है मानो यह किसी गाड़ी हेडलाइट हों। क्या इस गाड़ी और इस व्यक्ति का आपस में कोई सम्बन्ध है? शायद हो या शायद न हो?

कागज की नावों ने आवरण चित्र पर भी जगह बनाई है। आवरण के मध्य में एक व्यक्ति बैठा हुआ दिखाई देता है जो कि एक कुर्सी पर बंधा है और उसके पैर एक उल्टी नाव के ऊपर हैं। वहीं कुर्सी के नीचे भी कई नावें बिखरी हुई हैं। 

चित्र यह दर्शाता हुआ दिखाई देता है कि व्यक्ति इस नाव के साथ बंधा है और चाहकर भी इससे निजाद नहीं पा सकता है। ऐसे में इस उलटी हुई नाव में उसका डूबना तय है। किताब के बेककवर पर एक वाक्य लिखा हुआ है:

अपराध कागज की उस नाव की तरह होता है जो बहुत देर तक, बहुत दूर तक नहीं चलती

यह भी इस उपन्यास के कथानक पर काफी प्रकाश डालता सा प्रतीत होता है। यह कथानक ऐसे अपराधियों के विषय में होगा जो इस डूबती नाव में सवारी कर रहे हैं। ऐसे में यह उनके डूबने की कहानी होगी। इसका हमे अंदाजा तो हो ही जाता है।

चूँकि कवर एक तरह से उपन्यास की कहानी की तरफ इशारा करता है तो उस हिसाब से आवरण किताब से साथ न्याय करता है। पर फिर भी मन में ये बात कहीं तो रहती ही है कि कवर थोड़ा और बेहतर हो सकता था। 

आपका क्या ख्याल है?

किताब निम्न लिंक पर जाकर खरीदी जा सकती है:


© विकास नैनवाल 'अंजान'

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