आवरण चित्र : घाचर घोचर |
फिर एक बार अमेज़न पर विंडो शौपिंग(जब आप किसी रिटेल स्टोर में केवल चीजें देखने के इरादे से घूमते हैं) कर रहा था तो अचानक ऊपर दिए गये आवरण पर नजर पड़ी और मैंने किताब का नाम देखा। यह देखकर मुझे हैरत हुई कि यह तो विवेक शानभाग के प्रसिद्ध कन्नड़ उपन्यास का हिन्दी अनुवाद था। मुझे यह ध्यान आया कि यह किताब तो मैं लेना चाहता था। उस वक्त तक मैंने किताब के विषय में केवल अच्छी बातें सुनी थी। हाँ, किताब की न कोई समीक्षा पढ़ी थी और न ही यह जानने की कोशिश की थी कि यह किताब किस विषय में है।
इसलिए जब मैंने इस किताब को देखा और खरीदा तो किताब खरीदने के पीछे इसके उम्दा कवर का भी काफी बड़ा हाथ था। अगर मेरी नजर किताब के आवरण चित्र पर न टिकती तो शायद ही मैं इसे खरीदता।
जहाँ किताब का नाम घाचर घोचर है जो कि किताब के प्रति उत्सुक्ता तो जगाता ही है वहीं किताब का आवरण चित्र यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि किताब का विषय क्या होगा। आवरण चित्र शुऐब शाहिद जी ने बनाया है और इस आकर्षक आवरण के लिए वह बधाई के पात्र हैं।
आवरण चित्र में एक कॉफ़ी का कप मौजूद है जो कि किसी टेबल पर रखा प्रतीत हो रहा है। इस चित्र को देखकर यह तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि किताब किसी काफी हाउस या कैफ़े के विषय में है। मुझे नहीं पता मैं कितना सही हूँ लेकिन सबसे पहला ख्याल तो मन में यही आता है। इसके बाद दूसरा ख्याल मन में यह आता है कि यह कप किसका है? क्योंकि इधर एक ही कप दिख रहा है तो मन में यह प्रश्न सहज ही उठता है कि क्या वह व्यक्ति अकेला ही इधर आकर कॉफ़ी पीता है? अगर वह अकेला कॉफ़ी पीता है तो वह अकेला कॉफ़ी क्यों पीता है? उसके इस जगह आने का क्या मकसद है? कवर में कप के इर्द्र गिर्द बेल बूटे बने हुए हैं। अगर अब आप इतना सोच लेते हैं तो यह भी सोच सकते हैं कि इन बेल बूटों को इधर क्यों दर्शाया गया है। क्या यह केवल सुन्दरता के लिए इधर इस्तेमाल किये गये हैं या यह कॉफ़ी पीने वाले की मनः स्थिति को दर्शाते हैं? प्रश्न काफी हैं और उत्तर आपको पता है किताब पढ़कर ही आप जान पाएंगे।
शायद यही वह बातें थी जिन्होंने मुझे किताब खरीदने के लिए प्रेरित किया। किताब मैं पढ़ चुका हूँ तो इतना तो कह सकता हूँ कि उस वक्त मन में जितने प्रश्न उठे थे उनमें से कईयों के जवाब मुझे मिल ही गये थे।
आपके मन में इस किताब के आवरण को देखकर क्या आता है? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
© विकास नैनवाल 'अंजान'
इसलिए जब मैंने इस किताब को देखा और खरीदा तो किताब खरीदने के पीछे इसके उम्दा कवर का भी काफी बड़ा हाथ था। अगर मेरी नजर किताब के आवरण चित्र पर न टिकती तो शायद ही मैं इसे खरीदता।
जहाँ किताब का नाम घाचर घोचर है जो कि किताब के प्रति उत्सुक्ता तो जगाता ही है वहीं किताब का आवरण चित्र यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि किताब का विषय क्या होगा। आवरण चित्र शुऐब शाहिद जी ने बनाया है और इस आकर्षक आवरण के लिए वह बधाई के पात्र हैं।
आवरण चित्र में एक कॉफ़ी का कप मौजूद है जो कि किसी टेबल पर रखा प्रतीत हो रहा है। इस चित्र को देखकर यह तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि किताब किसी काफी हाउस या कैफ़े के विषय में है। मुझे नहीं पता मैं कितना सही हूँ लेकिन सबसे पहला ख्याल तो मन में यही आता है। इसके बाद दूसरा ख्याल मन में यह आता है कि यह कप किसका है? क्योंकि इधर एक ही कप दिख रहा है तो मन में यह प्रश्न सहज ही उठता है कि क्या वह व्यक्ति अकेला ही इधर आकर कॉफ़ी पीता है? अगर वह अकेला कॉफ़ी पीता है तो वह अकेला कॉफ़ी क्यों पीता है? उसके इस जगह आने का क्या मकसद है? कवर में कप के इर्द्र गिर्द बेल बूटे बने हुए हैं। अगर अब आप इतना सोच लेते हैं तो यह भी सोच सकते हैं कि इन बेल बूटों को इधर क्यों दर्शाया गया है। क्या यह केवल सुन्दरता के लिए इधर इस्तेमाल किये गये हैं या यह कॉफ़ी पीने वाले की मनः स्थिति को दर्शाते हैं? प्रश्न काफी हैं और उत्तर आपको पता है किताब पढ़कर ही आप जान पाएंगे।
शायद यही वह बातें थी जिन्होंने मुझे किताब खरीदने के लिए प्रेरित किया। किताब मैं पढ़ चुका हूँ तो इतना तो कह सकता हूँ कि उस वक्त मन में जितने प्रश्न उठे थे उनमें से कईयों के जवाब मुझे मिल ही गये थे।
आपके मन में इस किताब के आवरण को देखकर क्या आता है? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
© विकास नैनवाल 'अंजान'
शानदार कवर समीक्षा
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया....
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