शनिवार, 28 दिसंबर 2019

आवरण चित्र: जुआघर

जुआघर

हिन्दी पल्प उपन्यासों के आवरण चित्र मुझे हमेशा से ही आकर्षित करते रहे हैं। विशेषकर पुराने वक्त के उपन्यास जिनके कवर किसी पेंटिंग से कम नहीं होते थे।

 उन दिनों कलाकार को उपन्यास का कवर बनाने के लिए कहा जाता था तो बाकायदा पेंटिंग पेंट करता था। उस वक्त कलाकार काम होता था कि वह ऐसा आवरण चित्र तैयार करे कि पाठक आवरण चित्र देखकर ही पुस्तक खरीदने को आतुर हो। आवरण देखकर उसके मन में कथानक पढ़ने की इच्छा जागृत हो जाये। 

यही कारण है कि जहाँ पहले उपन्यासों के कथानक के हिसाब से कवर बनते थे वहीं आगे चलकर आवरण चित्रों में आकर्षक बालाओं की मौजूदगी बढ़ने लगी। भले ही उपन्यास में उत्तेजक सामग्री न हो लेकिन किताबो के आवरण में उत्तेजक बालाएं भी आने लगी। लेकिन फिर मंदी का दौर आया। डिजिटाईजेशन का दौर आया। और इस दौर में आवरण बनाने के खर्चे को कम करने के लिए प्रकाशकों ने नई तरकीब निकाली। अब वह टुकड़े आर्टिस्ट से बनवाते हैं और फिर उन विभिन्न टुकड़ों को अलग अलग तरह से डिजिटली मॉडिफाई करके अपने कवर के लिए प्रयोग में लाते हैं। इससे उन्हें फायदा यह होता है कि एक टुकड़े को बनाने के पैसे तो एक बार देते हैं लेकिन उसका इस्तेमाल असंख्य बार, असंख्य आवरण चित्रों में कर सकते हैं।

उपरोक्त कवर भी ऐसे ही तरीके से बनाया लगता है। कवर में एक स्त्री है, एक पुरुष है जिसके हाथ मे गन है और एक कैसिनो यानी जुआघर है। तीनों अलग अलग तत्व हैं जिन्हें बाद में शीर्षक के हिसाब से जोड़ा गया है। अगर आप राजा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित  अन्य उपन्यास देखेंगे तो शायद यह स्त्री और वह पुरुष दूसरे आवरण चित्रों में भी मिल जायें।

कवर की बात करूँ तो इन तत्वों को देखकर साफ़ प्रतीत होता है कि यह कथानक किसी जुयेघर के इर्द गिर्द बुना गया है। शीर्षक भी चूँकि जुआघर है तो पाठक के रूप में मेरे मन में यह विचार पुख्ता हो जाता है कि उपन्यास का कथानक इसी जुआघर के इर्द गिर्द बुना गया होगा।

कवर में कुछ पंक्तियाँ भी दर्ज हैं :

जगमोहन कसीनो में डकैती की तैयारी कर रहा था और देवराज चौहान की नज़र उस पर थी। साजिश का जाल हर तरफ बिछा हुआ था।

यह तहरीर और कवर में दर्ज किया देवराज चौहान सीरीज यह दर्शाने के लिए काफी है कि प्रस्तुत उपन्यास देवराज चौहान श्रृंखला का है। देवराज को जो पढ़ते हैं वो जानते हैं कि देवराज डकैती मास्टर है तो वह अंदाजा लगा सकते हैं कि इस उपन्यास में जुआघर में ही डकैती होगी। हाँ, फर्क बस यह है कि इस बार देवराज तैयारी नहीं कर रहा है। वह केवल नज़र रख रहा है। तैयारी जगमोहन कर रहा है जो कि दूसरे उपन्यासों में देवराज के लिए  काम करता प्रतीत होता है।

कवर में एक और बिंदु है जो मुझे आकर्षित कर रहा है। इसमें एक स्त्री बनी हुई है। इससे मन में एक प्रश्न तो उठता है। वह यह कि क्या इस उपन्यास में कोई स्त्री अहम भूमिका में है। अगर हाँ, तो उसका क्या रोल रहेगा। या फिर कवर को आकर्षित बनाने के लिए ही स्त्री का प्रयोग किया गया है। वहीं एक प्रश्न ये भी है कि यह पुरुष कौन है? इसके हाथ में बंदूक क्यों है? क्या यह जगमोहन है या कोई अन्य व्यक्ति? इसका इस स्त्री से क्या रिश्ता है?

खैर, यह सब तो उपन्यास पढ़ने के पश्चात ही पता चलेगा। कवर के विषय में यही कहूंगा कि डिजिटल रूप से मॉडिफाई किये हुए ऐसे कवर मेरे पसंदीदा नहीं रहे हैं। अगर इस उपन्यास का आवरण चित्र भी पेंट करवाया गया होता तो वह असर डालता लेकिन फिर भी यह कवर मुझे उतना बुरा नहीं लगा। इस कवर की खास बात यह है कि इसके तत्वों को कथानक के हिसाब से जोड़ा गया है। इस बात के लिए ही कवर डिज़ाइनर की तारीफ़ बनती है वरना तो आजकल कई उपन्यासों में कवर का उपन्यास के कथानक से दूर दूर तक लेना देना नहीं होता है।

आपको किस तरह के आवरण चित्र पसंद हैं: पुराने वक्त के पेंट किये हुए या आज के डिजिटल रूप से बनाये गये? 

© विकास नैनवाल 'अंजान'

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