शीर्षक : वक्त का मारा
लेखक : अनिल सलूजा
इस किताब के कवर ने ही मेरे अन्दर इसको पढने के लिए कोतुहल जागृत किया था। मुझे लगा था कि कवर में दर्शाया गया सीन उपन्यास में होगा लेकिन ऐसा कुछ था नहीं। कवर का उपन्यास की कहानी से दूर दूर तक कुछ लेना देना नहीं था। लेकिन फिर भी कहानी रोचक थी।
कई बात कवर और उपन्यास ऐसे ही होते हैं। कवर को आकर्षक बनाने के लिए उसमे कुछ भी डाल देते हैं और पाठक को बाद में पता चलता है कि कवर और उपन्यास के कथानक का कुछ लेना देना नहीं है। ऐसे में अगर कहानी सही है तब पाठक ज्यादा बुरा नहीं महसूस करता है लेकिन अगर कहानी कमजोर या खराब निकली तो अपनी को ठगा हुआ जरूर महसूस करेगा।
आपका क्या ख्याल है?
लेखक : अनिल सलूजा
इस किताब के कवर ने ही मेरे अन्दर इसको पढने के लिए कोतुहल जागृत किया था। मुझे लगा था कि कवर में दर्शाया गया सीन उपन्यास में होगा लेकिन ऐसा कुछ था नहीं। कवर का उपन्यास की कहानी से दूर दूर तक कुछ लेना देना नहीं था। लेकिन फिर भी कहानी रोचक थी।
कई बात कवर और उपन्यास ऐसे ही होते हैं। कवर को आकर्षक बनाने के लिए उसमे कुछ भी डाल देते हैं और पाठक को बाद में पता चलता है कि कवर और उपन्यास के कथानक का कुछ लेना देना नहीं है। ऐसे में अगर कहानी सही है तब पाठक ज्यादा बुरा नहीं महसूस करता है लेकिन अगर कहानी कमजोर या खराब निकली तो अपनी को ठगा हुआ जरूर महसूस करेगा।
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