tag:blogger.com,1999:blog-65293583846339825442024-03-14T15:37:36.331+05:30आवरणों की दुनियाकिताब जब पहली बार देखते हैं तो उसका आवरण ही है जो आपको उसे उठाने को मजबूर करता है। शायद यही कारण है कि अंग्रेजी में Don't Judge a book by its cover कहा जाने लगा क्योंकि लोग आवरण देखकर ही किताब का अंदाजा लगाने लगे थे।
हाँ, एक अच्छा आवरण किताब के अच्छे होने की गारंटी नहीं होता है लेकिन एक अच्छी किताब पर लगा हुआ अच्छा कवर उस किताब के प्रति पाठकों का कोतूहल जरूर बढ़ा सकता है। यह ब्लॉग ऐसे ही कलात्मक और आकर्षक आवरणों के लिए हैं। उम्मीद है आपको यह प्रयास पसंद आएगा। विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.comBlogger158125tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-32214005100753360242022-09-14T06:14:00.007+05:302022-09-14T12:23:35.600+05:30आवरण चित्र: मौली घर चली<p> कई दिनों से यहाँ कुछ प्रकाशित नहीं कर रहा था लेकिन हाल ही में एक पुस्तक पढ़ी जिसका कवर मुझे बहुत पसंद आया और उसके विषय में लिखने से मैं खुद को रोक नहीं पाया। </p><p>यह पुस्तक <b>शिल्पा शर्मा</b> की उपन्यासिका <b>मौली घर चली</b> है और इसका आवरण चित्र <b>रश्मि श्रीवास्तव</b> ने बना रखा है। मुझे तो यह बड़ा प्यारा और खुशनुमा लगा। आप भी देखिए। फिर कवर पर बातें करेंगे। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3qZwyZTxtQTLf_Y_nd6MsqpluTbyp6xtRVBQp4q8k_Q_lRqjVjrJR-NT82yqYujKtzUsfHDMeRsD-sQMeRqUiJp8CQzkkdIxV6zunTqEBJSGwsViOx_8MXhb-g0tIEEbrzh6ih-eR9UIPMk1HkpUb0VUMU1zGe2qtw8pxqrmCp7FpPzqmRdjojy7B/s500/mauligharchali.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="500" data-original-width="345" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3qZwyZTxtQTLf_Y_nd6MsqpluTbyp6xtRVBQp4q8k_Q_lRqjVjrJR-NT82yqYujKtzUsfHDMeRsD-sQMeRqUiJp8CQzkkdIxV6zunTqEBJSGwsViOx_8MXhb-g0tIEEbrzh6ih-eR9UIPMk1HkpUb0VUMU1zGe2qtw8pxqrmCp7FpPzqmRdjojy7B/s320/mauligharchali.jpg" width="221" /></a></div><div><br /></div>शिल्पा शर्मा की यह पुस्तक एक अट्ठारह वर्षीय युवती की कहानी है। आवरण चित्र को देखें तो इसमें दो किरदार नजर आते हैं। यह किरदार एक युवती है और उसके पीछे एक युवक बैठा हुआ है। युवती और युवक के चेहरे पर मुस्कान दिख रही है। वहीं युवती आत्मविश्वासी भी नजर आती है। साथ-साथ आवरण चित्र में कलाकार <b>रश्मि श्रीवास्तव</b> ने रंग संयोजन ऐसा रखा है कि एक खुशनुमा सा एहसास आवरण चित्र को देख पर होता है। ऐसा लगता है कि जैसे इन दो किरदारों विशेषकर युवती (क्योंकि वो फोकस में है) के जीवन में खुशियाँ आ गई हैं। चूँकि मैं यह कहानी पढ़ चुका हूँ तो जानता हूँ कि यह सच भी है। <div><br /><div>आपका तो पता नहीं लेकिन मेरे चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान यह आवरण चित्र छोड़ जाता है। यह पुस्तक का आकर्षण कई गुना बढ़ा देता है। <b> रश्मि श्रीवास्तव </b>इस कवर लिए वाकई बधाई की पात्र हैं और इस आवरण चित्र को मैं अपने पुस्तकालय में जरूर रखना चाहूँगा। वहीं मैं रश्मि जी से कवर के बनाने की प्रक्रिया को जरूर जानना चाहूँगा। </div><div><br /></div><div>वैसे तो अभी <b>मौली घर चली</b> केवल 53 पृष्ठों की उपन्यासिका ही है लेकिन उम्मीद करता हूँ लेखिका एक संग्रह निकालेंगी और इस आवरण चित्र को वहाँ पर स्थान देंगी। </div><div><br /></div><div>आपको यह आवरण चित्र कैसा लगा? मुझे बताना नहीं भूलिएगा। इस आवरण चित्र को देखकर आपके मन में क्या ख्याल आता है ये भी बताइएगा। <br /><div><br /></div><div><p><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/3LaF6u8" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a></p><p><br /></p></div></div></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-47510901954103916292022-03-30T09:17:00.000+05:302022-03-30T09:17:36.341+05:30आवरण चित्र: आखिरी प्रेमगीत <p>रोचक आवरण चित्रों की बात आती है तो फ्लाइड्रीम्स प्रकाशन अपने द्वारा प्रकाशित उपन्यासों के आवरण चित्रों पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं। उनके द्वारा प्रकाशित किताबों के आवरण चित्र मुझे आकर्षित करते रहे हैं। </p><p>इसी शृंखला में अभिषेक जोशी का उपन्यास आखिरी आखिरी प्रेमगीत भी आता है। इस उपन्यास के आवरण चित्र पर मेरी नजर पड़ी तो बस टिकी ही रह गई थी। </p><p>आवरण चित्र के विषय में बाद में बात करेंगे पहले आप आवरण चित्र को देखें:</p><p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6kKr-Gk2Vpx93_zGBXx2hmgO7EXQWEXpNK8XNhOqmDKS1NwdzxauxESUOUFzgCYvU8ct40wwnLVM5GnaLsqo2qCXQP309Z2r_frBtSqN74LPFjLX0s0DqwwQLpapjWl5SBbwNR6i_iSY/s200/aakhirpremgeet.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="200" data-original-width="130" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6kKr-Gk2Vpx93_zGBXx2hmgO7EXQWEXpNK8XNhOqmDKS1NwdzxauxESUOUFzgCYvU8ct40wwnLVM5GnaLsqo2qCXQP309Z2r_frBtSqN74LPFjLX0s0DqwwQLpapjWl5SBbwNR6i_iSY/w260-h400/aakhirpremgeet.jpg" width="260" /></a></div><div><br /></div>आखिरी प्रेमगीत का कवर <a href="https://pulpfictionbookcovers.blogspot.com/search/label/निशांत मौर्य" rel="nofollow" target="_blank">निशांत मौर्य</a> ने बनाया है जो कि अपने द्वारा बनाए गए आवरण चित्रों के लिए जाने ही जाते हैं। अक्सर फोटो मैनीपुलेशन का इस्तेमाल कर सुंदर आवरण चित्र बनाने में उन्हें महारथ हासिल है। <div><br /></div><div>इस आवरण चित्र को आप देखते हैं तो आपकी नजर चित्र के तीन एलिमेंट्स पर पड़ती है। पहला चीज जो आपका ध्यान आकर्षित करती है वह नृत्यांगना है जो कि झूमते हुए नाचती दिख रही है। दूसरी चीज उसके पीछे मौजूद वीणा है जिससे अंदाज लगता है कि इसकी धुन पर वह नृत्य कर रही है। वहीं तीसरी चीज एक घेरा बना है हुआ जिसमें कोई डिजाइन बना हुआ है। </div><div><br /></div><div>इन तीनों को देखने पर आपके मन में सहसा ही ये प्रश्न उठने लगते हैं। </div><div><br /></div><div><b>यह कौन युवती है जो नृत्य कर रही है?</b> </div><div><b>यह वीणा कौन बजा रहा है?</b> </div><div><b>ये घेरा जो बना है क्या वह केवल आवरण को खूबसूरत बनाने के लिए बनाया गया है या फिर उसका कोई विशेष प्रयोजन है? </b></div><div><br /></div><div>इसके अलावा उपन्यास का शीर्षक 'आखिरी प्रेमगीत' (Aakhiri Premgeet) भी उत्सुकता जागृत करता है। </div><div><br /></div><div><b>यह आखिरी प्रेमगीत (Aakhiri Premgeet) किसका है? </b></div><div><b>किसने इस प्रेमगीत को गाया है? </b></div><div><b>यह प्रेमगीत क्यों गाया गया है?</b></div><div><br /></div><div><br /></div><div>चूँकि मैं उपन्यास पढ़ चुका हूँ तो इतना बता सकता हूँ कि उस डिजाइन का विशेष प्रयोजन है। अब प्रयोजन क्या है ये तो आपको उपन्यास पढ़कर ही पता चलेगा। वहीं नृत्य कौन कर रहा है और वीणा कौन बजा रहा है यह भी आपको उपन्यास पढ़ने पर ही पता लगेगा। और शीर्षक उपन्यास के कथानक पर फिट बैठता है। उससे जुड़े प्रश्नों के उत्तर जानने के लिये आपको उपन्यास को ही पढ़ना पड़ेगा। </div><div><br /></div><div>अभी तो इतना ही कहूँगा कि आवरण चित्र पाठक के मन में उत्सुकता जगाने का कार्य बाखूबी कर रहा है। </div><div><br /></div><div><b>क्या आपके मन में इस आवरण को देखकर कुछ प्रश्न उठ रहे हैं?</b></div><div><br /></div><div>अगर हाँ, तो कमेन्ट सेक्शन में मुझे बताना न भूलिएगा। </div><div><br /></div><div><b>अगर पुस्तक पर लिखी मेरी पाठकीय प्रतिक्रिया पढ़ना चाहें तो निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:</b></div><div><a href="https://www.ekbookjournal.com/2022/03/book-review-aakhiri-premgeet-abhishek-joshi.html" rel="nofollow" target="_blank">समीक्षा: आखिरी प्रेमगीत </a></div><div><br /></div><div><b>पुस्तक लिंक:</b> <a href="https://amzn.to/36Ck1sR" rel="nofollow" target="_blank">अमेज़न</a> <br /><p><br /></p><p><br /></p></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-79960537578984734542021-07-13T07:04:00.002+05:302021-07-13T07:04:39.402+05:30 आवरण चित्र: सुन्दरता की ब्लैकमेलिंग <p>अगर बचपन में आपकी बाल उपन्यासों में रूचि रही हो तो ऐसा नहीं हो सकता है कि आपने कभी एस सी बेदी का नाम न सुना हो। 90 के दशक में उनके राजन-इकबाल श्रृंखला के उपन्यास काफी प्रसिद्ध हुए थे। </p><p>यह चालीस पचास पृष्ठ के लघु-उपन्यास होते थे जिनकी कहानियाँ बहुत ही सरल होती थीं। बच्चों के बीच वह खासे प्रसिद्ध थे। इनके नायक राजन-इकबाल हुआ करते थे जो अपने प्रेमिकाओं शोभा और सलमा के साथ मिलकर देश के दुश्मनों से लोहा लिया करते थे। चूँकि यह एक तरह से पल्प उपन्यास थे तो उनके आवरण चित्रों पर इसकी झलक मिलती थी और यह आवरण चित्र खासे आकर्षक होते थे। </p><p>परन्तु यहाँ मैं ये बात साफ़ करना चाहूँगा कि अक्सर उनके आवरण चित्रों का कहानी से ज्यादा लेना देना नहीं होता था और यह मुझे उन आवरण चित्रों की कमी लगती थी। अब आज जो आवरण चित्र मैं प्रस्तुत करने जा रहा हूँ उसे ही देख लीजिये। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFCzVzBQN4JzHCCme2L9dBVsvqJOQUdKHXWhMM2GNaWJTeiWvUwoBZw5oC8D6aA9agzFkvifclfErU2a9xKCHqCZh0GLVdQ6LblvUY3IMzusFIArgf1h8br50gMYNYI3SvMTZpHXd8R7Y/s500/sundatakiblackmailing.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="आवरण चित्र: सुन्दरता की ब्लैकमेलिंग" border="0" data-original-height="500" data-original-width="304" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjFCzVzBQN4JzHCCme2L9dBVsvqJOQUdKHXWhMM2GNaWJTeiWvUwoBZw5oC8D6aA9agzFkvifclfErU2a9xKCHqCZh0GLVdQ6LblvUY3IMzusFIArgf1h8br50gMYNYI3SvMTZpHXd8R7Y/w244-h400/sundatakiblackmailing.jpeg" title="आवरण चित्र: सुन्दरता की ब्लैकमेलिंग" width="244" /></a></div><br /><p>तो देखा आपने आवरण चित्र। अब इस आवरण चित्र में गौर किया होगा कि यहाँ दो चरित्र दिखाई दे रहे हैं। एक तो यहाँ एक सूट बूट धारी मर्द है जिसके हाथ बंधे हुए हैं। वहीं दूसरा चरित्र एक सुन्दर युवती का है। युवती कपड़ों से शहरी नहीं बल्कि गाँव की लग रही है। वहीं उसने आदमी पर चाकू ताना हुआ है। आदमी के चेहरे पर निशान है जिससे खून रिस रहा है। निशान चाकू से लगा हुआ लगता है। </p><p>आवरण चित्र देखते ही आपके दिमाग में कुछ प्रश्न उठने लगते हैं। यह व्यक्ति कौन है? यह युवती कौन है और उसने उस व्यक्ति को क्यों पकड़ कर रखा है? वह उसे पकड़ कर क्या हासिल करना चाहती है? क्या युवती अकेले काम कर रही है या फिर उसकी कोई गैंग भी है? </p><p>चूँकि आवरण यह है तो आप यह सोचते हुए कहानी पढ़ने लगते हो कि कहानी में इसका जवाब मिलेगा लेकिन ऐसा होता नहीं है। इस आवरण का कहानी से दूर दूर तक लेना देना नहीं है। न ही कोई गाँव की गोरी यहाँ है और न ही वह किसी शहरी बाबू को कैद करके रखती है। </p><p>ऐसा नहीं है कि उपन्यास रोचक नहीं है या उपन्यास की कहानी से मिलता जुलता आवरण चित्र प्रकाशक बना नहीं सकता था। परन्तु ऐसा न कर उसने ये चित्र क्यों दिया यह मुझे समझ नहीं आता है। कहानी के हिसाब से इससे कई गुना बेहतर कवर बन सकता था।</p><p>अभी तो मैं यही कहूँगा कि कवर आकर्षक जरूर है लेकिन उपन्यास के साथ चूँकि न्याय नहीं करता है मेरी नजर में एक अच्छा कवर नहीं है। कहते हैं न कि 'डोंट जज का बुक बाय इट्स कवर'। शायद इन उपन्यासों के लिए भी इसे कहा गया है। </p><p>आपका क्या सोचना है? क्या आपको भी कभी ऐसे कहानी अलग और आवरण अलग देखने को मिला है? आप ऐसे आवरण चित्रों को किस तरह देखते हैं? मुझे बताइयेगा जरूर। </p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2Telfer WA 6762, ऑस्ट्रेलिया-21.7101855 122.2257227-50.020419336178847 87.0694727 6.600048336178844 157.3819727tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-59800823015262942932021-06-03T07:58:00.000+05:302021-06-03T07:58:12.518+05:30आवरण चित्र: चालबाज़ बूढ़ा<p>सन 2009 के करीब हार्पर कॉलिंस हिन्दी ने लेखक इब्ने सफी के कई उपन्यासों को पुनः प्रकाशित किया था। अगर हिन्दी जासूसी उपन्यास पढ़ते आये हैं या आपने कभी उन्हें पढ़ा है तो आपने इब्ने सफी का नाम न सुना हो ये हो नहीं सकता। इब्ने सफी ने अपने जीवन में <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/faree.html" target="_blank">जासूसी दुनिया सीरीज</a> और <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/blog-page_28.html" target="_blank">इमरान सीरीज</a> के अंतर्गत सौ सौ उपन्यासों से ऊपर लिखे थे। जब हार्पर ने इन्हें पुनः प्रकाशित किया तो उन्होंने <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/faree.html" target="_blank">जासूसी दुनिया श्रृंखला</a> के आठ उपन्यास और <a href="https://www.ekbookjournal.com/p/blog-page_28.html" target="_blank">इमरान सीरीज</a> के सात उपन्यासों को पुनः प्रकाशित किया। उपन्यासों का अनुवाद चौधरी ज़िया इमाम ने किया था। ऐसा नहीं है कि इब्ने सफी के उपन्यास पहली बार हिन्दी में अनूदित होकर प्रकाशित हो रहे थे। यह उपन्यास पहले भी हिन्दी में अनूदित हुए हैं लेकिन उस वक्त जासूसी दुनिया के नायक फरीदी का नाम हिन्दी अनुवाद में विनोद रखा गया था। इस बार अच्छी बात यह हुई है कि मुख्य किरदारों के नामों में कोई तब्दीली न की गयी है। </p><p>आज मैं आपके समक्ष जासूसी दुनिया श्रृंखला के सातवें उपन्यास <a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/05/book-review-chaalbaaz-boorha-ibne-safi.html" target="_blank">चालबाज बूढ़ा</a> का आवरण चित्र लेकर प्रस्तुत हुआ है। चलिए पहले आवरण चित्र देखते हैं:</p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhP_Jb74Nh-afTwqSisaD6MOjcUeJ-nnCxHRB4hxDnCHcrNdWL5ga7bfULy0vqL_0w5_RMyoqgGaBaT7UqZa6rTtH1Yzs9hrHx3z0Yyn6GC3QEL6H-ZLz9YLw-5MCEsT-egTr8gxVi4mH4/s611/chalbazboorha.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="आवरण चित्र: चालबाज़ बूढ़ा" border="0" data-original-height="500" data-original-width="611" height="328" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhP_Jb74Nh-afTwqSisaD6MOjcUeJ-nnCxHRB4hxDnCHcrNdWL5ga7bfULy0vqL_0w5_RMyoqgGaBaT7UqZa6rTtH1Yzs9hrHx3z0Yyn6GC3QEL6H-ZLz9YLw-5MCEsT-egTr8gxVi4mH4/w400-h328/chalbazboorha.jpg" title="आवरण चित्र: चालबाज़ बूढ़ा" width="400" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">फ्रंट कवर बायाँ, बैक कवर दायाँ</td></tr></tbody></table>हार्पर द्वारा पुनः प्रकाशित इब्ने सफी के उपन्यासों की खासियत यह रही है कि पूरा आवरण चित्र बैक कवर और फ्रंट कवर को बनाकर ही बनता है। ऊपर दिए कवर को अगर आप देखें तो फ्रंट कवर एक कहानी कह रहा है और बैक कवर दूसरी कहानी कह रहा है। <div><br /></div><div><span style="color: red;"><b>यह भी पढ़ें:</b></span> <a href="https://www.ekbookjournal.com/2021/05/book-review-chaalbaaz-boorha-ibne-safi.html" target="_blank">जासूसी दुनिया श्रृंखला के सातवें उपन्यास 'चालबाज़ बूढ़ा' की समीक्षा</a><br /><div><br /></div><div>पहले फ्रंट कवर पर आये तो इसमें एक बूढ़ा बना है और वहीं नीचे की तरफ कुछ कबीले वाले एक व्यक्ति को खाट पर बाँधे उसे घेर कर खड़े हैं। चूँकि शीर्षक चालबाज बूढ़ा है तो हम यह तो अंदाजा लगा सकते हैं कि यह बूढ़ा शायद वही हो। वहीं कबीले वालो को देखकर मन में यही प्रश्न उठता है कि इन कबीले वालों का कहानी से क्या लेना देना है। इन्होने ये किसे बाँधा हुआ है और ये अपने बंधक के साथ क्या करने वाले हैं? यह सभी बातें उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाते हैं। </div><div><br /></div><div>अगर बैक कवर पर हम आयें तो उसमें बंदूक पकड़े एक जासूस खड़ा है जो कि हो न हो शायद उपन्यास का नायक फरीदी ही है। वहीं बैक कवर पर एक औरत भी है जिसके हाथ में एक शीशी है जो कि वह पीने वाली है। यह औरत कौन है और वह शीशी से क्या पी रही है? क्या वो जहर है? अगर जहर है तो वह इसे क्यों पीना चाहती है? यह सब प्रश्न पाठक के मन में आवरण को देखकर आसानी से जागृत होंगे। </div><div><br /></div><div>चूँकि इसका आवरण चित्र किताब के प्रति उत्सुकता जगाता है तो मेरी नजर में यह एक अच्छा आवरण चित्र है। इस आवरण चित्र के लिये <a href="https://pulpfictionbookcovers.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B0%E0%A5%9B%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B8" target="_blank">रज़ा अब्बास</a> बधाई के पात्र हैं। उन्होंने ही इस आवरण चित्र को बनाया है और यह उपन्यास के साथ पूरा न्याय करता है। <a href="https://pulpfictionbookcovers.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B0%E0%A5%9B%E0%A4%BE%20%E0%A4%85%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B8" target="_blank">रज़ा अब्बास</a> ने ही हार्पर द्वारा प्रकाशित जासूसी दुनिया और इमरान श्रृंखला के उपन्यासों के आवरण बनाये थे और बहुत खूबसूरत बनाये थे। वो एक अनुभवी कलाकार हैं और यह चीज आवरण में दिखाई देती है। </div><div><br /></div><div>क्या आपने इस उपन्यास को पढ़ा है? आपको यह आवरण कैसा लगा? जरूर बताइयेगा। </div><div><br /></div><div><b><span style="color: red;">किताब लिंक: </span></b><a href="https://amzn.to/3wJVxp4" rel="nofollow" target="_blank">amazon.in</a> | <a href="https://amzn.to/3fCe54A" rel="nofollow" target="_blank">amazon.com</a></div><div><br /><p><br /></p><p><br /></p></div></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-55414000568539225802021-05-05T21:00:00.002+05:302021-05-05T21:00:21.071+05:30आवरण चित्र: अमोघ<p>आज आवरणों की दुनिया में मैं आपके समक्ष एक नहीं दो आवरण चित्र लेकर प्रस्तुत हुआ हूँ। परन्तु यह दो आवरण चित्र दो उपन्यासों के नहीं बल्कि एक ही लघु-उपन्यास के हैं। यह दोनों ही आवरण चित्र मुझे काफी पसंद आये थे तो सोचा इन्हें आपके साथ साझा का कर लूँ। </p><p>तो चलिए पहले आवरण चित्र देख लेते हैं और फिर इस पर बातचीत करेंगे।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEig2VZSmnXi15wNCarOuGX5a9uuFxggPNKKD-IkmZiTWaQMUNtAf3J8qITn8KaxHFM0kJo1cKQrBLEAuFkduSCo8r03lYvsT5CZpc3R1QKbRMOzzYURp8JmVJ8QKoGwGMgD_tpnVskSkQ0/s681/amogh.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="आवरण चित्र: अमोघ" border="0" data-original-height="505" data-original-width="681" height="474" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEig2VZSmnXi15wNCarOuGX5a9uuFxggPNKKD-IkmZiTWaQMUNtAf3J8qITn8KaxHFM0kJo1cKQrBLEAuFkduSCo8r03lYvsT5CZpc3R1QKbRMOzzYURp8JmVJ8QKoGwGMgD_tpnVskSkQ0/w640-h474/amogh.jpg" title="आवरण चित्र: अमोघ" width="640" /></a></div><div><br /></div>तो ये थे अनुराग कुमार सिंह द्वारा लिखे गये उपन्यास अमोघ के आवरण चित्र। बायाँ वाला चित्र जो है वह अमोघ के ई बुक संस्करण का है और दायाँ तरफ का जो चित्र है वह पेपरबैक संस्करण है। ई बुक संस्करण प्रसिद्ध कॉमिक बुक आर्टिस्ट सुशांत पांडा द्वारा बनाया गया है वहीं पेपरबैक संस्करण को नवनीत सिंह (स्केच), हरेन्द्र सैनी (कलर ) और निशांत मौर्य (डिजाईन कैलीग्राफी) की टीम ने बनाया है। दोनों ही आवरण चित्र रोचक हैं और पाठको के मन में उपन्यास के प्रति रूचि जगाने में सफल होते हैं।<div><br /></div><div>अमोघ एक सुपरहीरो नोवल है और आवरण चित्रों को देखने से ही यह बात साफ़ पता लग जाती हैं। अगर दोनों आवरण चित्रों के देखें तो इसमें तीन लोग मुख्य तौर पर नज़र आते हैं। यह तीनों ही सुपर हीरो कॉस्टयूम में हैं। यह कौन हैं और कैसे सुपर हीरो बने यह प्रश्न मन में आ ही जाता है। </div><div><br /></div><div>दोनों आवरण चित्रों की ख़ास बात यह है यह थोड़ा बहुत इन तीनों की ताकतों के विषय में भी पाठकों को बता देता है। </div><div><br /></div><div>एक व्यक्ति इसमें मानव मशाल की तरह लग रहा है जो दर्शाता है कि उसकी शक्ति आग की है। वहीं पेपरबैक संस्करण वाले आवरण चित्र में यह भी दर्शाया गया है आग की ताकतों वाला व्यक्ति उड़ भी सकता है। इन तीनो में एक युवती भी है जिसके अन्दर उड़ने की ताकत दिख रही है। वहीं उड़ने के अलावा उस युवती के अन्दर क्या ताकत है यह पता नहीं चल पा रहा है। इन दोनों के आलावा नीले सूट में जो व्यक्ति है वह इस टीम का लीडर लग रहा है। वह कौन है और इनका लीडर क्यों है यह प्रश्न भी मन में उठता है।</div><div><br /></div><div>दायें तरफ के आवरण में एक और व्यक्ति प्रमुखता से दिख रहा है। इसी के खिलाफ तीनो हीरोज लड़ते दिख रहे हैं। यह व्यक्ति कौन हैं और यह युद्ध किधर चल रहा है यह प्रश्न भी मन में उठ रहा है। </div><div><br /></div><div>अगर आप मेरी तरह कॉमिक बुक्स के शौक़ीन हैं तो आपको भी मेरी तरह इस उपन्यास को पढ़ने का मन जरूर रहा होगा। कॉमिक बुक में कई बार लेखक इतनी गहराई तक नहीं जा पाता लेकिन चूँकि यह किताब 150 पृष्ठों तक है तो उम्मीद है लेखक ने इसमें काफी अच्छे तरह से किरदारों को दर्शाया होगा। वहीं लेखक अनुराग कुमार सिंह चूँकि एक अनुभवी लेखक हैं तो देखना है कि उन्होंने इस बार पाठको के सामने क्या परोसा है। </div><div><br /></div><div>आपको बताते चलूँ कि उनका पूर्व प्रकाशित लघु उपन्यास <a href="https://ekbookjournalchildrenlit.blogspot.com/2019/05/my-thoughts-on-Mukhaute-ka-rahasy-by-Anurag-Kumar-Singh.html" target="_blank">मुखौटे का रहस्य</a> भी मैं पढ़ चुका हूँ और वह मुझे पसंद आया था। देखना है यह उपन्यास कैसा बन पड़ा है। आवरण चित्र तो मन में उत्सुकता जगाने में कामयाब होता ही है।</div><div><br /></div><div>आपका इन आवरण चित्रों के विषय में क्या सोचना है? मुझे बताना न भूलियेगा। </div><div><p></p><p><b><span style="color: red;">किताब लिंक:</span></b> <a href="https://amzn.to/33b15vV" target="_blank">पेपरबैक</a> | <a href="https://amzn.to/33bxSky" target="_blank">किंडल</a></p><p><span style="color: #660000;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></p></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-2164398236661263162020-12-01T17:21:00.005+05:302021-05-11T12:12:58.631+05:30आवरण चित्र: मर्डर ऑन वैलेंटाइन्स<p><span style="color: #660000; font-size: x-large;">आ</span>कर्षक आवरण चित्र की बात की जाए तो हालिया रिलीज़ हुई एक किताब का आवरण चित्र ऐसा है कि यह सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है। हिन्दी पल्प के स्वर्ण युग में जिस तरह से पेंट किये हुए आवरण चित्रों का ट्रेंड था कुछ उसी तरह का आवरण चित्र इस किताब का भी है। अब तो ज्यादातर कवर डिजिटल रूप से बनाये जाते हैं जिनमें अलग अलग चित्रों को डिजिटल रूप से जोड़ा जाता है। इससे कवर तो आसानी और सस्ते में बन जाता है लेकिन इन आवरण चित्रों को देखने में मुझे तो वह मजा नहीं आता है क्योंकि सब स्टॉक फोटो होती हैं जिससे यह फैक्ट्री में बनाई गयी प्रतीत होती हैं। कोई नोवेल्टी इनमें नहीं होती है।<br /><br /></p><span><a name='more'></a></span><p>यह कवर भी बनाया तो शायद डिजिटल रूप में गया है लेकिन यह उस वक्त के अंदाज में बना हुआ है और उस जमाने के आवरण चित्रों की याद मन में जगाता है। एक नोवेल्टी फैक्टर इसमें दिखाई देता है।</p><p>अगर आप हिन्दी लोकप्रिय साहित्य में रूचि रखते हैं तो अब तक समझ गये होंगे कि मैं किस किताब की बात कर रहा हूँ। अगर आप नहीं समझ पाए हैं तो बता दूँ कि यह किताब सूरज पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित विजय कुमार बोहरा जी द्वारा लिखी गयी रहस्यकथा मर्डर ऑन वैलेंटाइन्स है। </p><p>सबसे पहले तो आप आवरण चित्र देखिये:</p><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwO_BAI95YfM6iZO_qLWvO1K2kEWhVgaNcR2fdKllGhNQIDZdgiqFNVnG7OmOCQjoe5LZO0ML-YRexF_Hd4DPn5Dei-6PJUkXWMCtmyOuT3Yp5V89F0ZapEU82cIXhSSyTusD7DR1ocRY/s500/Murder-on-Valentines-night_cover_f.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="मर्डर ऑन वैलेंटाइन - विजय बोहरा" border="0" data-original-height="500" data-original-width="312" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiwO_BAI95YfM6iZO_qLWvO1K2kEWhVgaNcR2fdKllGhNQIDZdgiqFNVnG7OmOCQjoe5LZO0ML-YRexF_Hd4DPn5Dei-6PJUkXWMCtmyOuT3Yp5V89F0ZapEU82cIXhSSyTusD7DR1ocRY/w400-h640/Murder-on-Valentines-night_cover_f.jpg" title="मर्डर ऑन वैलेंटाइन - विजय बोहरा" width="400" /></a></div><p></p><p>देखा आपने। ऊपर दिया कवर आपको उस युग की याद नहीं दिलाता जब किताबों के आवरण चित्रों को कलाकारों द्वारा पेंट किया जाता था। व्यक्तिगत तौर पर मुझे तो पेंट किए हुए कवर ही पसंद आते हैं और शायद ज्यादातर पाठकों को भी पेंट किये हुए आवरण चित्र पसंद आते हैं तभी तो इस कवर की मैंने तो हर जगह तारीफ़ ही सुनी है।</p><p>कवर गौर से देखें तो आप पायेंगे कि यह कवर बरबस ही आपका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर देता है। सफेद बैकग्राउंड पर तीन किरदार, एक गुलाब और एक चाकू आपको दर्शाए गये हैं। कवर कथानक के प्रति आपकी उत्सुकता जगाता है। कवर पर बनी आकृति एक कातिल की है जिसके हाथ में एक रक्तरंजित चाकू है। जमीन पर खून से लथपथ एक लाश लेटी हुई है। इस लाश के नीचे एक गुलाब का फूल है। इस फूल की डंडी लाश से दबी हुई है जबकि फूल, जो कि लाश के सिर की तरफ है, पर एक खून से लथपथ चाकू की नोक टिकी हुई है। वहीं एक और डर से चीखती सी स्त्री आपको कवर पर दिखाई देती है। उस स्त्री के नीचे एक न्यूज़ की कटिंग है जसमें शायद इन कत्लों की रिपोर्ट दर्शाने का प्रयास किया गया है।</p><p>आवरण चित्र पर दर्शाए गये ये तीनों ही किरदार आपको सोचने पर मजबूर करते हैं कि यह कौन हैं और ऐसी परिस्थितियों में कैसे पहुँचे? कौन है ये लड़की जिसका कत्ल हुआ है? चीखने वाली लड़की से कत्ल हुई लड़की का क्या सम्बन्ध है? क्या चीखने वाली लड़की कातिल का अगला शिकार है? क्योंकि उसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे वह अपने हमलावर को देखकर चीख रही है? यह कातिल कौन है और क्यों उसने उस लड़की का कत्ल किया है? वह और कितने कत्ल करेगा? क्या गुलाब के फूल पर जो खून से लथपथ चाकू धँसा हुआ दिखाया गया है वह इस और इशारा करता है कि कातिल लड़की का प्रेमी है?</p><p>वहीं किताब का शीर्षक भी आपको सोचने पर मजबूर करता है कि वैलेंटाइन के दिन से इसका क्या सम्बन्ध है? वैलेंटाइन के दिन प्रेमी एक दूसरे को गुलाब देते हैं। यह गुलाब इस कवर में भी दिखता जरूर है लेकिन उसे चाकू से गोदा गया है। यह एक तरह से धोखा भी दर्शता है। </p><p>कुल मिलाकर कहूँ तो यह कवर कथानक के प्रति पाठक की उत्सुकता जगाने में कामयाब होता है। कवर में वैसे तो कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन एक बिंदु है जिस पर अगर कार्य होता तो कवर और खिल कर आता:</p><p>अभी चीखती हुई स्त्री के नीचे एक अखबार की कटिंग है जिसमें कि एक खबर छपी हुई है। उस कटिंग में news आप पढ़ सकते हैं और रिपोर्ट भी अंग्रेजी में है। अगर अखबार अंग्रेजी की जगह हिन्दी का होता तो और मजा आता।</p><p> खैर यह छोटी सी बात है जिससे उतना फर्क कवर की सुन्दरता पर नहीं पड़ता है। यह कवर <a href="https://www.facebook.com/dpk.id.9" target="_blank">दीपक</a> द्वारा बनाया गया है और वह इसके लिए बधाई के पात्र हैं। कवर अपना काम बहुत ही अच्छे तरीके से कर रहा है।</p><p>दीपक नये कवर आर्टिस्ट मालूम होते हैं। उम्मीद है वह ऐसे और भी उम्दा आवरण चित्र किताबों के लिए तैयार करते रहेंगे।</p><p>यह किताब सूरज पॉकेट बुक्स के नवम्बर सेट में प्रकाश्ति हुई है। किताब और इस सेट के विषय में ज्यादा जानकारी आपको निम्न लिंक्स पर मिल जाएगी:</p><p><a href="https://www.ekbookjournal.com/2020/11/sooraj-pocket-books-new-set-released.html" target="_blank"> सूरज पॉकेट बुक्स: नवम्बर सेट</a></p><p>किताब अगर आप मँगवाना चाहें तो सूरज पॉकेट बुक्स से मँगवा सकते हैं<br /><a href="https://www.soorajbooks.com/product/murder-on-valentines-night-%e0%a4%ae%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a1%e0%a4%b0-%e0%a4%91%e0%a4%a8-%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b2%e0%a5%87%e0%a4%82%e0%a4%9f%e0%a4%be%e0%a4%87%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%b8/" target="_blank">मर्डर ऑन वैलेंटाइन</a></p><p><span style="color: #660000;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-64866358247404099342020-11-19T08:46:00.001+05:302020-11-19T09:26:04.258+05:30आवरण चित्र: लकड़ी का रहस्य<span style="color: #660000; font-size: x-large;">आ</span>ज मैं आपके समक्ष राजा बाल पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित बाल उपन्यास लकड़ी के रहस्य का आवरण चित्र लेकर आ रहा हूँ। एक जमाना हुआ करता था जब एस सी बेदी जी के किरदार राजन इकबाल सभी बच्चों के पसंदीदा किरदार हुआ करते थे। उसी दौरान एस सी बेदी जी के कई बाल उपन्यास प्रकाशित हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि एस सी बेदी जी ने इस दौरान 1500 के करीब बाल उपन्यास लिखे थे। जितने ये बाल उपन्यास रोचक होते थे उतने ही रोचक इनके आवरण चित्र होते थे।<span><a name='more'></a></span><div>लकड़ी का रहस्य भी ऐसा ही एक बाल उपन्यास है। पहले तो आप आवरण चित्र ही देखिये:</div><div><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikwrpCF6Fvo9bzbac7bimu0LpNgIfsmGoHDley7_UB6QBFT5yQ5irNb3efLgn-5Idov6_kgZb3AvnyuChGDkPJlH9wV_PI3O9KSm-l5MSHMwQjJ4uV8kVwTEzdmi0VFaT8s2LMM8wXMeA/s800/%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%259C%25E0%25A5%2580+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF-final.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="लकड़ी का रहस्य - एस सी बेदी" border="0" data-original-height="639" data-original-width="800" height="512" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEikwrpCF6Fvo9bzbac7bimu0LpNgIfsmGoHDley7_UB6QBFT5yQ5irNb3efLgn-5Idov6_kgZb3AvnyuChGDkPJlH9wV_PI3O9KSm-l5MSHMwQjJ4uV8kVwTEzdmi0VFaT8s2LMM8wXMeA/w640-h512/%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%259C%25E0%25A5%2580+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE+%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF-final.jpg" title="लकड़ी का रहस्य - एस सी बेदी" width="640" /></a></div><br /><div>उपन्यास का आवरण चित्र आप देखें तो इसमें एक टोपी लगा युवा दिख रहा है जिसके हाथ में एक लकड़ी है। वहीं एक घबराई हुई युवती भी आवरण चित्र में दिखाई दे रही है। इसी के साथ इसका शीर्षक लकड़ी का रहस्य ऐसा है कि यह आपके मन में इस बाल उपन्यास के प्रति कोतुहल जगा ही देता है। </div><div><br /></div><div><b><span style="color: #660000;">आखिर यह युवक कौन है? </span></b></div><div><b><span style="color: #660000;">उसके हाथ में मौजूद जो लकड़ी है क्या उसी के रहस्य की बात की जा रही है?</span></b></div><div><span style="color: #660000;"><b>आखिर इस लकड़ी में रहस्यमय क्या है?</b></span></div><div><b><span style="color: #660000;">यह घबराई हुई युवती कौन है?</span></b></div><div><b><span style="color: #660000;">इस युवती का इस युवक और इस लकड़ी से क्या सम्बन्ध है?</span></b></div><div><b><span style="color: #660000;"><br /></span></b></div><div>यह कुछ प्रश्न है जो कि आवरण देखकर ही मन में उठ जाते हैं। इनके उत्तर तो उपन्यास पढ़ने के बाद ही पता चलेंगे लेकिन इतना तय है कि आप आवरण चित्र देखेंगे तो उपन्यास को एक बार उठाने से खुद को रोक नहीं पाएंगे।</div><div><br /></div><div>है न?</div><div><br /></div><div>यह आवरण चित्र किसने बनाया है यह इस उपन्यास में कहीं दर्ज नहीं है। अगर होता तो अच्छा होता।</div><div><br /></div><div>लकड़ी के रहस्य का एक छोटा सा अंश आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं</div><div><a href="https://ekbookjournalchildrenlit.blogspot.com/2020/11/book-excerpt-lakdi-ka-rahasy-s-c-bedi.html" target="_blank">पुस्तक अंश: लकड़ी का रहस्य </a></div><div><br /></div><div>अगर आपको राजन इकबाल पंसद आते हैं या थे तो निम्न लेख भी जरूर पसंद आयेगा:<br /><a href="https://www.ekbookjournal.com/2020/09/rajan-iqbal-ladke-kamal.html" target="_blank">राजन इकबाल लड़के कमाल</a></div><div><br /></div><div><span style="color: #660000;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-80002412835886990342020-11-08T08:21:00.005+05:302020-11-22T19:57:35.766+05:30आवरण चित्र: एक्सीडेंट एक रहस्य कथा - अनुराग कुमार जीनियस<p>आज जो आवरण चित्र मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ वह अनुराग कुमार जीनियस के उपन्यास एक्सीडेंट एक रहस्यकथा का है। यह किताब सूरज पॉकेट बुकस से प्रकाशित है। चूँकि मैंने इस किताब को उनके सेट के साथ ही खरीदा था तो आवरण चित्र उस वक्त तो गौर से नहीं देखा था लेकिन अब देख रहा हूँ तो मुझे रोचक लग रहा है। सबसे पहले आप आवरण चित्र देख लीजिए।</p><span></span><span><a name='more'></a></span><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFjqx-7clqII6Y_fHgfjhPT0KQPwt-Qbv1ZXNeSCDTC-C9oLqdk0_hyphenhyphenV2ygGv21t8lCChlv_uRyEyZ0bdojsZT8MhbNyTSMFBe_YPi4oUNnPovzAn9sjSk47YbODBBAm1LzXWf0iRPPcw/s800/%25E0%25A4%258F%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A1%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%259F+%25E0%25A4%258F%25E0%25A4%2595+%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25A5%25E0%25A4%25BE.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="709" data-original-width="800" height="568" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhFjqx-7clqII6Y_fHgfjhPT0KQPwt-Qbv1ZXNeSCDTC-C9oLqdk0_hyphenhyphenV2ygGv21t8lCChlv_uRyEyZ0bdojsZT8MhbNyTSMFBe_YPi4oUNnPovzAn9sjSk47YbODBBAm1LzXWf0iRPPcw/w640-h568/%25E0%25A4%258F%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A1%25E0%25A5%2587%25E0%25A4%2582%25E0%25A4%259F+%25E0%25A4%258F%25E0%25A4%2595+%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25AF+%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25A5%25E0%25A4%25BE.jpg" width="640" /></a></div><br /><p>आवरण चित्र को अगर देखें तो इसमें एक कार दिखाई दे रही है जो कि किसी नदी में डूबती हुई दिखाई गयी है। चूँकि कार की हेडलाइट जल रही है और आसपास अँधेरा है तो आसानी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि दुर्घटना जब हुई तब रात का वक्त था। इस कार का ड्राइविंग सीट वाला दरवाजा खुला हुआ है और कार के बगल में एक युवती डूबती हुई दिखाई दे रही है। कार खाली दिख रही है तो यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अकेली ही इस कार को चला रही थी।</p><span><!--more--></span><p>आमतौर पर अगर कोई व्यक्ति डूब रहा होता है तो उसका चेहरा मोहरा विकृत हो जाता है। उसके चेहरे पर खौफ के भाव विद्यमान होते हैं और उसकी शारिरिक मुद्रायें उसकी इस छटपटाहट को दर्शाती है। परंतु आवरण चित्र पर बनी युवती के साथ ऐसा कुछ नहीं है। ऊपर की तरफ उठा हुआ उसका चेहरा साफ देखा जा सकता है। </p><p>युवती का चेहरा अगर आप गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि उसकी आँखें बंद हैं। उसके चेहरे पर एक शांति दिखाई देती है। एक पल के लिए आप सोच सकते हैं कि वह बेहोश हो लेकिन उसकी शरीरिक मुद्रा कुछ इस तरह से बनी हुई है जिससे लगता है जैसे उसने अपनी मौत को गले लगाया है। वह बचना नहीं चाहती है।</p><p><b>यह युवती कौन है? </b></p><p><b>इतनी रात गये वह कहाँ जा रही थी या कहाँ से आ रही थी?? </b></p><p><b>क्या यह सचमुच एक दुर्घटना थी या, जो कि युवती के चेहरे को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है, आत्महत्या की कोशिश थी? अगर यह युवती द्वारा आत्महत्या की कोशिश थी तो उसने यह कदम क्यों उठाया?</b></p><p>आवरण चित्र देखकर मन में उभरते यह प्रश्न उपन्यास के कथानक के प्रति मेरे मन में उत्सुकता जगा देते हैं। </p><p>आपका क्या ख्याल है???</p><p>एक अच्छे आवरण चित्र की यही खासियत होती है कि वह पाठक के मन में उपन्यास के कथानक को लेकर इतने प्रश्न जगा देता है कि वह उपन्यास पढ़ने के लिए लालायित हो जाता है। इस मापदण्ड में मेरी नज़र में तो यह उपन्यास खरा उतरता है। इस कारण शाहनवाज़ खान, जिन्होंने इस उपन्यास का कवर बनाया है, बधाई के पात्र हैं। उम्मीद है ऐसे अच्छे आवरण चित्र वो बनाते रहेंगे।</p><p>किताब अगर आप चाहें तो आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:</p><p><a href="https://amzn.to/3kcr9wK" target="_blank">किंडल</a> | <a href="https://amzn.to/2Uaof0N" target="_blank">पेपरबैक</a></p><p><br /></p><p><span style="color: #660000;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></p><p><br /></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-35585619784297336882020-10-27T18:04:00.003+05:302020-11-22T19:57:53.221+05:30आवरण चित्र: हिमसुंदरी<p><span style="color: #660000; font-size: x-large;">आ</span>ज मैं आपके समक्ष यमुना दत्त वैष्णव की किताब हिमसुंदरी का आवरण चित्र लेकर आया हूँ। हिमसुंदरी मैंने 2018 के दिल्ली विश्व पुस्तक मेले से खरीदी थी। पुस्तक मेलों में मुझे घूमना पसंद रहा है क्योंकि उधर काफी ऐसी किताबें मिल जाती हैं जिनके विषय में पुस्तक मेले में जाने से पहले मुझे कोई जानकारी नहीं रहती है। ऐसे में नई और अनजान किताबों को मैं अपने साथ लेकर आ जाता हूँ। 2018 के दिल्ली पुस्तक मेले में भी ऐसी काफी किताबें मेरे साथ मेरे घर आईं थीं। 2018 के इस पुस्तक मेले की मेरी घुमक्कड़ी का वृत्तांत आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:<br /><br /><a href="https://www.duibaat.com/2018/08/new-delhi-world-book-fair-2018.html" target="_blank">नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2018 </a></p><span><a name='more'></a></span><p>हिमसुंदरी की बात करूँ तो हिमसुंदरी के आवरण चित्र ने ही नहीं अपितु उसके शीर्षक ने भी मेरा ध्यान अपनी और आकृष्ट कर दिया था इसलिए मैं जो कि <a href="https://www.ekbookjournal.com/2019/10/my-take-on-maut-ka-rahasya-param-aanand.html" target="_blank">मौत का रहस्य</a> किताब लेने लिए विश्व बुक्स के स्टाल में गया था वो इस किताब को भी लेकर आ गया। </p><p>चलिए पहले आवरण चित्र को ही देख लेते हैं:<br /></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbL6TdUSJwcIMqRqtUwiXB6x3oyKWa-MzlemD4mPWQ2jqAvWOr8dlfPVUz0RXCc3p3RJ-nGaZeRHD741mTo10PrCvRGJSCmgHWwS3ZHMPq06ChVAw2lNkLNEbZ7yb2Iff6ny7b-GrEYs8/s600/%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25A8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A6%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2580.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="हिमसुंदरी - यमुना दत्त वैष्णव" border="0" data-original-height="452" data-original-width="600" height="482" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjbL6TdUSJwcIMqRqtUwiXB6x3oyKWa-MzlemD4mPWQ2jqAvWOr8dlfPVUz0RXCc3p3RJ-nGaZeRHD741mTo10PrCvRGJSCmgHWwS3ZHMPq06ChVAw2lNkLNEbZ7yb2Iff6ny7b-GrEYs8/w640-h482/%25E0%25A4%25B9%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AE%25E0%25A4%25B8%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%25A8%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25A6%25E0%25A4%25B0%25E0%25A5%2580.jpg" title="हिमसुंदरी - यमुना दत्त वैष्णव" width="640" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">हिमसुंदरी - यमुनादत्त वैष्णव 'अशोक'</td></tr></tbody></table><br /><div>तो यह रहा हिमसुंदरी का आवरण चित्र। अगर आप आवरण चित्र को देखेंगे तो पायेंगे कि आवरण चित्र में दो चीजें प्रमुख तौर पर दिखाई दे रही हैं। </div><div><br /></div><div>पहली चीज जो व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करती है वह दो बड़े हिमखण्ड हैं जिससे ऐसा लगता है कि यह चित्र किसी बर्फीले पहाड़ी इलाके का है। </div><div><br /></div><div>दूसरी चीज जो आवरण चित्र में दर्शाई गयी है वह एक बर्फ में ढकी हुई मानवीय आकृति है। आकृति को देखने से पता चलता है कि यह एक महिला है जो कि खड़ी है और बर्फ ने उसे कैद करके रखा है। <div><br /></div><div>यह दोनों ही चीजें पाठक के मन में उत्सुकता पैदा करने के लिए काफी हैं। निम्न प्रश्न पाठक के मन में सहज ही उत्पन्न हो जाते हैं:<br /><br /><span style="color: #660000;">यह किस जगह का चित्र है और इस चित्र में दर्शाई दे रही यह महिला कौन है? </span></div><div><span style="color: #660000;"><br />क्या यही वह हिमसुंदरी का जिसके ऊपर इस किताब का शीर्षक है? </span></div><div><span style="color: #660000;"><br />फिर एक और प्रश्न आपके मन में आता है कि यह महिला इस बर्फ की कैद में कैसे आई और क्या इस उपन्यास में इस कहानी को भी उजागर किया जाएगा?</span></div><div><span style="color: #660000;"><br />चूँकि यह दृश्य हम देख रहे हैं तो इस बात का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि किताब के किसी चरित्र को यह दृश्य दिखाई दिया होगा। आखिर वह चरित्र कौन है और वह इस वीरान इलाके में क्या कर रहा था? </span></div><div><br /></div><div>ऐसे ही कई प्रश्न मेरे मन में जागृत हो गये थे और इनके उत्तर खोजने के लिए ही मैंने इस उपन्यास को उठा दिया था और उलटने पलटने पर मुझे किताब के बैककवर पर जो लिखा मिला उसने मेरी उत्सुकता किताब के प्रति जगा दी और किताब मैंने ले ही ली।</div><div><br /></div><div>अब इस किताब को पढ़ने का मौका लगा है। मेरे मन में जो ये प्रश्न उठे थे उनके उत्तर यह किताब दे पाती है या नहीं ये तो जुदा विषय है लेकिन एक बात तय है कि आवरण चित्र पाठक के मन में एक उत्सुकता जगाने में कामयाब हो जाता है। किताब के आवरण चित्र को डिजाईन करने वाले व्यक्ति एक अच्छे आवरण के लिए बधाई के पात्र हैं। इस पुस्तक में उनका नाम तो नहीं है लेकिन उम्मीद है वह ऐसे ही उम्दा आवरण चित्र बनाते रहेंगे। </div><div><br /></div><div>आपको यह आवरण चित्र कैसा लगा? मुझे बताइयेगा।</div><div><br /></div><div>किताब आप मँगवाना चाहे तो अमेज़न से निम्न लिंक के माध्यम से मँगवा सकते हैं:<br /><a href="https://amzn.to/35yVUqq" target="_blank">पेपरबैक</a> | <a href="https://amzn.to/3mqPIYj" target="_blank">किंडल</a></div><div><br /></div><div><span style="color: #660000;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span><br /><p><br /></p></div></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-16699667225314492832020-10-04T09:04:00.010+05:302020-11-22T19:58:07.255+05:30आवरण चित्र: The Demon Hunter of Chottanikkara<b><span style="color: #660000; font-size: x-large;">मु</span></b>झे अक्सर ऐसे उपन्यास पढ़ना पसंद है जिसमें परालौकिक तत्व(सुपरनेचुरल एलिमेंट्स) मौजूद हों। राक्षस, भूत प्रेत, पिशाच जैसे जीवों की कल्पना करना और उनको लेकर लिखे गये कथानक पढ़ना एक रोमांच से मुझे भर देता है। ऐसे उपन्यासों की एक ख़ास बात तो इनके आवरण चित्र ही होते हैं जो कि बहुत ही रोचक बनाये जाते हैं। <span><a name='more'></a></span><div><br /></div><div>अक्सर मैं ऐसे हॉरर या फंतासी उपन्यास ले लेता हूँ। अगर इन उपन्यास के लेखक भारतीय हो तो फिर कहना ही क्या? वो तो सोने पर सुहागा है।<div><br /></div><div>ऐसे ही एक उपन्यास के आवरण चित्र ने मुझे बरबस ही अपनी तरफ आकर्षित कर लिया था। यह उपन्यास था S V Sujatha का लिखा The Demon Hunter of Chottanikkara. पहले तो आप आवरण चित्र देखिये फिर आगे की बातें करेंगे।</div><div><br /></div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDAl3ThZeUpchc8mL_08AWPqwBr9u1MXuzfk_T2DfH5ogXQWbaEFOJPjuHhMiFc9RXZF3SgjLzjzLFisB-E8Tlf0VsTeUjkHQ6IuhCYeS2cwH14qaBsoFZ9dA__d_rDCJZnxs_RPN8BEc/s800/thedemonhunterofchottanikara.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="662" data-original-width="800" height="530" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDAl3ThZeUpchc8mL_08AWPqwBr9u1MXuzfk_T2DfH5ogXQWbaEFOJPjuHhMiFc9RXZF3SgjLzjzLFisB-E8Tlf0VsTeUjkHQ6IuhCYeS2cwH14qaBsoFZ9dA__d_rDCJZnxs_RPN8BEc/w640-h530/thedemonhunterofchottanikara.jpg" width="640" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">The Demon Hunter of Chottanikkara - S V Sujatha</td></tr></tbody></table><br /><div><br /></div><div>तो देखा आपने आवरण? है न रोचक? </div><div><b><br /></b></div><div><b>इसे देखकर ही सबसे पहला प्रश्न मेरे मन में आया था कि यह बड़ी सी डायनासौर जैसी छिपकली आखिर है क्या? क्या यही वो राक्षस है जिसके विषय में यह उपन्यास है?</b> </div><div><br /></div><div>फिर आवरण चित्र में दो परछाई दिख रही हैं। इनमें से एक स्त्री है और दूसरा सिंह है। </div><div><br /></div><div>इन्हें देखकर प्रश्न उठता है कि <b> इस सिंह और और इस स्त्री, जो कि यौद्धा दिख रही है, में क्या रिश्ता है? क्या ये दोनों दोस्त हैं? क्या इनका मिशन इस दैत्याकार जीव को मारना है? अगर हाँ, तो इन्हें इस मिशन पर किसने भेजा और क्यों? क्या ये इसमें सफल हो पाए? यह घटनाएं कहाँ घटित हो रही हैं?</b> </div><div><br /></div><div>ऐसी ही कई प्रश्न इस आवरण चित्र को देखकर मेरे में जागृत हो गये थे। मुझे मालूम था कि इनके उत्तर तो उपन्यास को पढ़कर ही पता चल पाएंगे और इस कारण मैंने इस उपन्यास को खरीद लिया। <br /><br />अब मैं इस उपन्यास को पढ़ रहा हूँ। देखना है इन प्रश्नों के उत्तर मुझे मिलते हैं या नहीं? लेकिन यह बात तो कहनी ही होगी कि यह आवरण एक पाठक की उत्सुकता जगाने में कामयाब जरूर होता है। यह कवर आर्ट <b>कुनाल कुंडु</b> की है और वह इसके लिए बधाई के पात्र हैं।</div><div><b><br /></b></div><div><b>आपका इस आवरण चित्र के विषय में क्या ख्याल है? क्या आपको यह रोचक लगा?</b></div><div><b><br /></b></div><div><b>क्या अपने इस उपन्यास को पढ़ा है? अगर हाँ तो क्या आपको लगा कि आवरण चित्र ने कथानक के साथ न्याय किया है? </b><br /><br />अपने विचारों से मुझे अवगत जरूर करवाईयेगा।</div><div><br /></div><div>उपन्यास अगर आप चाहें तो निम्न लिंक से जाकर खरीद सकते हैं:</div><div><a href="https://amzn.to/3cUuFdj" target="_blank">The Demon Hunter of Chottanikkara</a></div></div><div><br /></div><div><br /></div><div><br /></div><div><b><span style="color: red;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-444768337128943712020-09-26T19:23:00.007+05:302020-11-22T19:58:28.842+05:30विज्ञापन #1<p> वैसे तो हिन्दी अपराध साहित्य में छपने वाले आवरण चित्र ही बहुत रोचक होते हैं लेकिन कवर्स के बाद जो चीजें मुझे रोचक लगती हैं वो इन किताबों के बीच में छपने वाले विज्ञापन। कई बार तो विज्ञापन साधारण होते हैं लेकिन कई बार विज्ञापनों में रेखा चित्र दिए होते हैं। हमेशा से ही ऐसे रेखा चित्रों के प्रति मेरा आकर्षण रहा है। यह रेखा चित्र जिन किताबों के विज्ञापन देते हैं उनके प्रति रूचि जगाते ही जगाते हैं। अब निम्न रेखा चित्र देखिये:</p><span><a name='more'></a></span><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCYEipzQykZ_RwZ567OZLUfDmwa5AvdLQs1_mmqZwidROnzhbxpkdLXphi5eQ_JH_siyjOzDh-y4apgUYNaNSE7SM3xpHUp1QRMnJDRKwmypFrAey4KK2qkRrw8a2j6-73oazQglPzQyc/s800/vigyapan.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="675" data-original-width="800" height="540" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCYEipzQykZ_RwZ567OZLUfDmwa5AvdLQs1_mmqZwidROnzhbxpkdLXphi5eQ_JH_siyjOzDh-y4apgUYNaNSE7SM3xpHUp1QRMnJDRKwmypFrAey4KK2qkRrw8a2j6-73oazQglPzQyc/w640-h540/vigyapan.jpg" width="640" /></a></div><br /><p>अब ऊपर दिए रेखा चित्र अगर आप देख रहे हैं तो यह वेद प्रकाश शर्मा द्वारा रचित देवकांता सन्तति का विज्ञापन है। विज्ञापन में चार किरदार हैं और विज्ञापन देखकर आपके मन में इनके विषय में जानने की रूचि जागृत हो जाती है। है कि नहीं? </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-90219109155710992122020-08-22T08:33:00.002+05:302020-11-22T19:58:42.588+05:30आवरण चित्र: Moon - James Herbert<p><span style="font-size: xx-large;">अ</span>गर रोचक आवरण चित्रों की बात करूँ तो <b><a href="https://amzn.to/34tSCpk" rel="nofollow" target="_blank">जेम्स हर्बर्ट</a></b> के उपन्यास <b><a href="https://amzn.to/32eHHNB" target="_blank">मून</a></b> का नाम उनमें लेना गलत न होगा। जेम्स हर्बर्ट ब्रिटिश लेखक हैं जो अपने हॉरर उपन्यासों के लिए जाने जाते हैं। यह उपन्यास मुझे याद है मैंने <a href="https://www.duibaat.com/2017/09/24th-delhi-book-fair-daryaganjs-sunday-market-and-a-mini-meet.html" target="_blank">दरियागंज बाज़ार से 2017</a> में लिया था और उस वक्त जब पहली बार मैंने उपन्यास उठाया था तो मुझे पहले पहल तो लगा था कि आवरण चित्र फटा हुआ है। लेकिन जब मैंने गौर से देखा तो पाया कि यह आवरण चित्र फटा नहीं था बल्कि यह इसके खबूसूरत और रोचक डिजाईन का हिस्सा था। आगे बढ़ने से पहले आप आवरण चित्र ही देख लीजिये:</p><span><a name='more'></a></span><p><br /></p><p><br /></p><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuwS_du_w8On1B9p-P4-nuOcEXkNUOKNyALZZgPq4W81MvaRCweerJK9zXsiu1RG4yVM17W6CuJuCeAU0DrVU1f5pDU0hyOpLPxQpR8eKbKrrou_WJ2njyaxV4wb8JYTh-XEa0htEvSRU/s500/%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25B01.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="500" data-original-width="328" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuwS_du_w8On1B9p-P4-nuOcEXkNUOKNyALZZgPq4W81MvaRCweerJK9zXsiu1RG4yVM17W6CuJuCeAU0DrVU1f5pDU0hyOpLPxQpR8eKbKrrou_WJ2njyaxV4wb8JYTh-XEa0htEvSRU/s0/%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25B01.jpg" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">बंद आवरण</td></tr></tbody></table><br /><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMAVvSTNwByH3SdouHB6M8F2wCiGwQcIh0MpAsolTRM62s67hPV5B585FS5VGMSSdcB1UJ_uFt8LCOYxA-9GFhellYsnI0EAm9yml1u0RwU7YDlT3U10IqsmJOHV_Ioe9SjV08dHUkczQ/s500/%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25B02.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="468" data-original-width="500" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMAVvSTNwByH3SdouHB6M8F2wCiGwQcIh0MpAsolTRM62s67hPV5B585FS5VGMSSdcB1UJ_uFt8LCOYxA-9GFhellYsnI0EAm9yml1u0RwU7YDlT3U10IqsmJOHV_Ioe9SjV08dHUkczQ/s0/%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25B5%25E0%25A4%25B02.jpg" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">आवरण खोलने पर </td></tr></tbody></table><span><!--more--></span><p>क्या आपने ऐसा आवरण चित्र और देखा है? मैं अपनी बात करूँ तो मेरे लिए ऐसा आवरण चित्र देखना पहला अनुभव था। जब आप यह किताब बंद करते हैं तो आपको बादलों से झाँकता चाँद दिखाई देता है और वहीं जब इस आवरण को खोलते हैं तो एक टापू के ऊपर बादलों से झाँकता चाँद दिखलाई देता है। </p><p>चूँकि उपन्यास का नाम मून है तो इससे यह अंदाजा तो हो जाता है कि उपन्यास में चाँद का महत्व है। बादलों से झाँकता हुए चाँद को जिस तरह प्रमुखता से दर्शाया जा रहा है उससे इस तरह का भाव मन में आता है कि जरूर चाँद के निकलने से कुछ न कुछ खौफनाक होने वाला है। उपन्यास के अंदर के आवरण चित्र में दो बातें हैं। पहला तो यह कि चित्र में एक टापू दर्शाया गया है जो कि चाँद की चांदनी से रोशन लगता है। इससे यह अंदाजा होता कि चाँद के कारण इस टापू में कुछ घटित होगा। वहीं आवरण में नीचे की तरफ एक वाक्य लिखा है The nightmare begins before you sleep....अर्थात रात को आने वाले बुरे सपने अब सोने से पहले आएंगे... <br /><br />यह चीजें उपन्यास के प्रति आपके मन रोचकता जगाते हैं। कुछ प्रश्न जो मन में उठते हैं वह कुछ यूँ हैं:</p><p><b><i><span style="color: #274e13;">चाँद के आने से इस टापू पर क्या होने वाला है?</span></i></b></p><p><b><i><span style="color: #274e13;">यह कौन से बुरे सपने हैं जो कि जागते हुए ही दिखाई देने वाले हैं?</span></i></b></p><p><b><i><span style="color: #274e13;">कौन सा किरदार इन बुरे सपनों का शिकार बनेगा और वह कैसे इन से बचेगा?</span></i></b></p><p>अच्छे आवरण चित्र की यही खूबी होती है। यह पाठक के अंदर उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगता है। है न। </p><p>हाँ, एक बात जो मुझे बुरी लगी वह यह कि जिस व्यक्ति ने यह कवर डिजाईन किया था उसका नाम इस पर मौजूद नहीं है। वह व्यक्ति बधाई के पात्र हैं। नाम होता तो अच्छा रहता। </p><p><b>क्या आप भी ऐसे किसी आवरण चित्र से रूबरू हुए हैं?</b> टिप्पणियों में बताइयेगा।</p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></p>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-28321635407760982992020-07-27T10:21:00.003+05:302020-11-22T19:58:59.748+05:30आवरण चित्र: कागज की नाव - सुरेन्द्र मोहन पाठक<br /><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUsJVOZjuPFpsI5DAB7otGNYp8ftLnVnxMhrbw-bPqh1anEvnLXLG4Ir_C33eqDQkpqkmMgKfejoCAYWsl6ozBSvP0oUXLb81c-zIAMHbU8lX2g3B_p5cPGs7gCGFpbfvwMMB4R1p9w6w/s800/%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2597%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B5.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="520" data-original-width="800" height="416" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUsJVOZjuPFpsI5DAB7otGNYp8ftLnVnxMhrbw-bPqh1anEvnLXLG4Ir_C33eqDQkpqkmMgKfejoCAYWsl6ozBSvP0oUXLb81c-zIAMHbU8lX2g3B_p5cPGs7gCGFpbfvwMMB4R1p9w6w/w640-h416/%25E0%25A4%2595%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%2597%25E0%25A4%259C%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%2580%25E0%25A4%25A8%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25B5.jpg" width="640" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">कागज की नाव - सुरेन्द्र मोहन पाठक</td></tr></tbody></table><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">कागज की नाव सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखा गया एक अपराध गल्प है। सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का नाम किसी किताब से जुड़ा हो तो यह लगभग तय होता है कि उपन्यास अपराध गल्प होगा। यह संस्करण वेस्टलैंड द्वारा प्रकाशित किया हुआ है। </div><span><a name='more'></a></span><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">अगर पुस्तक के कवर की बात करें तो व्यक्तिगत तौर पर पहली नजर में इसने मेरा ध्यान इतना आकर्षित नहीं किया था। यह उन आवरणों से अलग है जैसा कि हम अक्सर अपराध गल्प की किताबों में देखते आये हैं। कवर का शीर्षक कागज की नाव है जो कि एक पीले गोले जैसी चीज पर लिखा हुआ है। इस गोले से रोशनी की किरणे निकल रही हैं जो कि कुर्सी पर बंधे व्यक्ति पर भी पड़ रही है। ऐसा लग रहा है मानो यह किसी गाड़ी हेडलाइट हों। क्या इस गाड़ी और इस व्यक्ति का आपस में कोई सम्बन्ध है? शायद हो या शायद न हो?</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">कागज की नावों ने आवरण चित्र पर भी जगह बनाई है। आवरण के मध्य में एक व्यक्ति बैठा हुआ दिखाई देता है जो कि एक कुर्सी पर बंधा है और उसके पैर एक उल्टी नाव के ऊपर हैं। वहीं कुर्सी के नीचे भी कई नावें बिखरी हुई हैं। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">चित्र यह दर्शाता हुआ दिखाई देता है कि व्यक्ति इस नाव के साथ बंधा है और चाहकर भी इससे निजाद नहीं पा सकता है। ऐसे में इस उलटी हुई नाव में उसका डूबना तय है। किताब के बेककवर पर एक वाक्य लिखा हुआ है:</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><b><i><br />अपराध कागज की उस नाव की तरह होता है जो बहुत देर तक, बहुत दूर तक नहीं चलती</i></b></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">यह भी इस उपन्यास के कथानक पर काफी प्रकाश डालता सा प्रतीत होता है। यह कथानक ऐसे अपराधियों के विषय में होगा जो इस डूबती नाव में सवारी कर रहे हैं। ऐसे में यह उनके डूबने की कहानी होगी। इसका हमे अंदाजा तो हो ही जाता है।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">चूँकि कवर एक तरह से उपन्यास की कहानी की तरफ इशारा करता है तो उस हिसाब से आवरण किताब से साथ न्याय करता है। पर फिर भी मन में ये बात कहीं तो रहती ही है कि कवर थोड़ा और बेहतर हो सकता था। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">आपका क्या ख्याल है?</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">किताब निम्न लिंक पर जाकर खरीदी जा सकती है:</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://amzn.to/3g1KO1i" rel="nofollow" target="_blank">कागज की नाव</a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><b><font color="#ff0000">© विकास नैनवाल 'अंजान'</font></b></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><b><i></i></b></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-60158287688389858572020-06-23T17:36:00.003+05:302020-11-22T19:59:16.407+05:30आवरण चित्र: रहस्य - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा<div><b><font color="#b51200" size="6">ब</font></b>हुत दिनों से इधर कुछ पोस्ट नहीं कर पाया हूँ। इसका एक कारण यह भी है कि कई दिनों से कोई रोचक आवरण चित्र नहीं दिखा। इस महीने वैसे भी पढ़ना कम ही हुआ। अब जनप्रिय ओम प्रकाश शर्मा जी का उपन्यास रहस्य पढ़ने को निकाला है। </div><span><a name='more'></a></span><div><br /></div><div><br /></div><div>रहस्य का आवरण चित्र बरबस ही आपका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर देता हैं। पहले आवरण देखिये।</div><div><br /></div><table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><tbody><tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlIRzlfFEyovfsoODgNNHCX2aJaoFn4PBG4T4LO0Pn36mawLdW48BeROQ73zoWtq4alOFB_iuhLYqsjyHV11uexiAVlm_ZZfjAPVgcHmZZ5ImEFi7hOkw8iqrQDLfADuIv7tY1rG5mjts/s827/omprakashsharma.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="827" data-original-width="500" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjlIRzlfFEyovfsoODgNNHCX2aJaoFn4PBG4T4LO0Pn36mawLdW48BeROQ73zoWtq4alOFB_iuhLYqsjyHV11uexiAVlm_ZZfjAPVgcHmZZ5ImEFi7hOkw8iqrQDLfADuIv7tY1rG5mjts/w241-h400/omprakashsharma.jpg" width="241" /></a></td></tr><tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">रहस्य - जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा </td></tr></tbody></table><div><br /></div><div>अगर इस आवरण चित्र को गौर से देखें तो इसमें तीन स्त्रियाँ दर्शाई गयी हैं। दो स्त्रियाँ विलाप करती सी प्रतीत होती हैं और एक स्त्री मुँह पर हाथ रखे ऐसे भाव दर्शा रही है जैसे वो घबराई हो या बहुत आश्चर्यचकित हो गयी हो। </div><div><br /></div><div>पहले दो विलाप करती स्त्रियों की बात करें तो उनमें से एक बड़ी उम्र की लगती है और एक छोटी उम्र की है। बड़ी उम्र की स्त्री ने साड़ी पहने है और जवान लड़की आधुनिक पाश्चात्य परिधान में है। इन दोनों के बीच कुछ न कुछ रिश्ता प्रतीत होता है। <b>यह रिश्ता क्या है?</b> यह सोचने वाली बात है। यह दोनों माँ बेटी भी हो सकती हैं, बहने भी हो सकती हैं और भाभी ननद भी हो सकती हैं। दोनों रो रही हैं तो एक प्रश्न मन में यह भी उठता है कि <b>यह किस कारण रो रही हैं? क्या कोई दुर्घटना हुई है? अगर हाँ तो वह क्या है? क्या 'रहस्य' से इनका कुछ लेना देना है?</b></div><div><br /></div><div>वहीं इनके अतिरक्त जो तीसरी स्त्री है वह हैरान या घबराई हुई लग रही है। <b>वह हैरान है तो क्यों है? यह घबराई हुई है तो क्यों है? क्या यह घबराहट या हैरानी इसी रहस्य के चलते है? </b>यह प्रश्न भी मन के किसी कोने में उठते हैं। </div><div><br /></div><div>वहीं इस आवरण चित्र को देखें तो हम एक दूसरे कोण से इसके विषय में सोच सकते हैं। <b>पाठक के मन में यह ख्याल आ सकता है कि आवरण में तीनों ही स्त्री पात्र क्यों है? क्या यह महिला प्रधान उपन्यास है? और उपन्यास में जिस रहस्य का जिक्र हो रहा है क्या उससे इन महिला पात्रों का कोई लेना देना है या केवल ऐसे भी आवरण में इन चित्रों का प्रयोग किया है? </b></div><div><br /></div><div>आवरण को देखते हुए ये जो प्रश्न मन में उठते हैं इन्हीं के उत्तर जानने के लिए पाठक उपन्यास जरूर पढ़ना चाहेगा और इस लहजे से यह आवरण सफल है। यह उपन्यास के कथानक के प्रति उत्सुकता मन में जगाता है।</div><div><br /></div><div>आवरण चित्र के कोने में अंग्रेजी में F Hashmi लिखा हुआ है। यह शायद इस आवरण चित्र को बनाने वाले पेंटर के दस्तखत होंगे। अगर उनसे जान सकता तो जरूर जानता कि इस आवरण चित्र को बनाने के लिए प्रकाशक ने उनसे क्या कहा था और उन्होंने फिर प्रकाशक या लेखक के विज़न को अपनी कूचियों में ढाला था। </div><div><br /></div><div><b><font color="#b51200">अगर आपको एफ हाश्मी जी के विषय में ज्यादा जानकारी हो तो उसे मुझसे जरूर साझा कीजियेगा। </font></b></div><div><br /></div><div><b>आपके मन में इस आवरण को देखकर क्या प्रश्न उठते हैं? </b></div><div><br /></div><div>उन सवालों को भी मेरे साथ जरूर साझा कीजियेगा।</div><div><br /></div><div><b><font color="#b51200">© विकास नैनवाल 'अंजान'</font></b></div>विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-87960860050185903812020-04-02T19:47:00.002+05:302020-11-22T19:59:58.870+05:30आवरण चित्र : घाचर घोचर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimBa2WwpqJJo0RHei_NGjKEfIgm0iiihQHobj-va_U-5fRwSI-ZZ9NuEIOWHSElr4fy5yMCKVyX7jUhQPUOvOdJe_DJbpfjKrDZ2RnWdEZD-WiXmxgla8otrw_ZDzGtlrBPyexaF1d8fE/s1600/ghaacharghochar.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="600" data-original-width="800" height="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEimBa2WwpqJJo0RHei_NGjKEfIgm0iiihQHobj-va_U-5fRwSI-ZZ9NuEIOWHSElr4fy5yMCKVyX7jUhQPUOvOdJe_DJbpfjKrDZ2RnWdEZD-WiXmxgla8otrw_ZDzGtlrBPyexaF1d8fE/s640/ghaacharghochar.jpg" width="640" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">आवरण चित्र : घाचर घोचर</td></tr>
</tbody></table>
<b><span style="font-size: x-large;">सा</span></b>हित्यिक उपन्यासों के आवरण चित्र भी कई बार रोचक बन पड़ते हैं। विवेक शानभाग के उपन्यास <b>घाचार-घोचर</b> ने आते ही प्रसिद्धि पा ली थी। जब पहली बार मैंने इस उपन्यास का नाम सुना था तो उस वक्त मूल रूप से कन्नड़ में लिखे गये इस उपन्यास का अंग्रेजी संस्करण ही बाज़ार में आया था। नाम अजीब था और एक तरह से यह किताब के प्रति उत्सुकता जागाता था। लेकिन फिर जैसा कि अक्सर होता है आप किसी रोचक किताब के विषय में सुनते हैं और अगर उस वक्त उस पर ध्यान नहीं देते हैं तो आप उसे भूल जाते हैं।मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कुछ दिनों बाद इसके विषय में मैं भूल गया।<br />
<br /><br /></div><span><a name='more'></a></span><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
फिर एक बार अमेज़न पर विंडो शौपिंग(जब आप किसी रिटेल स्टोर में केवल चीजें देखने के इरादे से घूमते हैं) कर रहा था तो अचानक ऊपर दिए गये आवरण पर नजर पड़ी और मैंने किताब का नाम देखा। यह देखकर मुझे हैरत हुई कि यह तो विवेक शानभाग के प्रसिद्ध कन्नड़ उपन्यास का हिन्दी अनुवाद था। मुझे यह ध्यान आया कि यह किताब तो मैं लेना चाहता था। उस वक्त तक मैंने किताब के विषय में केवल अच्छी बातें सुनी थी। हाँ, किताब की न कोई समीक्षा पढ़ी थी और न ही यह जानने की कोशिश की थी कि यह किताब किस विषय में है।<br />
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इसलिए जब मैंने इस किताब को देखा और खरीदा तो किताब खरीदने के पीछे इसके उम्दा कवर का भी काफी बड़ा हाथ था। अगर मेरी नजर किताब के आवरण चित्र पर न टिकती तो शायद ही मैं इसे खरीदता।<br />
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जहाँ किताब का नाम घाचर घोचर है जो कि किताब के प्रति उत्सुक्ता तो जगाता ही है वहीं किताब का आवरण चित्र यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि किताब का विषय क्या होगा। आवरण चित्र शुऐब शाहिद जी ने बनाया है और इस आकर्षक आवरण के लिए वह बधाई के पात्र हैं।<br />
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आवरण चित्र में एक कॉफ़ी का कप मौजूद है जो कि किसी टेबल पर रखा प्रतीत हो रहा है। इस चित्र को देखकर यह तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि किताब किसी काफी हाउस या कैफ़े के विषय में है। मुझे नहीं पता मैं कितना सही हूँ लेकिन सबसे पहला ख्याल तो मन में यही आता है। इसके बाद दूसरा ख्याल मन में यह आता है कि यह कप किसका है? क्योंकि इधर एक ही कप दिख रहा है तो मन में यह प्रश्न सहज ही उठता है कि क्या वह व्यक्ति अकेला ही इधर आकर कॉफ़ी पीता है? अगर वह अकेला कॉफ़ी पीता है तो वह अकेला कॉफ़ी क्यों पीता है? उसके इस जगह आने का क्या मकसद है? कवर में कप के इर्द्र गिर्द बेल बूटे बने हुए हैं। अगर अब आप इतना सोच लेते हैं तो यह भी सोच सकते हैं कि इन बेल बूटों को इधर क्यों दर्शाया गया है। क्या यह केवल सुन्दरता के लिए इधर इस्तेमाल किये गये हैं या यह कॉफ़ी पीने वाले की मनः स्थिति को दर्शाते हैं? प्रश्न काफी हैं और उत्तर आपको पता है किताब पढ़कर ही आप जान पाएंगे।<br />
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शायद यही वह बातें थी जिन्होंने मुझे किताब खरीदने के लिए प्रेरित किया। किताब मैं पढ़ चुका हूँ तो इतना तो कह सकता हूँ कि उस वक्त मन में जितने प्रश्न उठे थे उनमें से कईयों के जवाब मुझे मिल ही गये थे।<br />
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आपके मन में इस किताब के आवरण को देखकर क्या आता है? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।<br />
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<b><span style="color: red;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></div><span></span><span><br /></span>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-1845271987419467742020-03-19T19:32:00.001+05:302020-11-22T20:00:16.892+05:30आवरण चित्र: बदला - ओम प्रकाश शर्मा 'जनप्रिय लेखक'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="font-size: x-large;">हि</span></b>न्दी पल्प उपन्यासों के आवरण चित्रों की श्रृंखला मैं आपके समक्ष आज <b>'जनप्रिय लेखक' ओम प्रकाश शर्मा</b> जी के उपन्यास <b>बदला</b> का आवरण चित्र प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह किताब मुझे अपने एक दोस्त द्वारा पढ़ने को दी गयी है। किताब में दर्ज जानकारी के हिसाब से इस किताब का पहला संस्करण 1992 में जनप्रिय लेखक प्रकाशन से प्रकाशित हुआ था। यह संस्करण कौन सा है इसकी कोई जानकारी इस किताब में नहीं दी गयी है। हाँ, यह जरूर बताया गया है कि उपन्यास के रूप में छपने से पहले इस किताब की कड़ियाँ हर रविवार कलकत्ते से प्रकाशित दैनिक सन्मार्ग से प्रकाशित हुई थीं। यह जानना रोचक है। वैसे आज भी पत्रिकाओं के कई उपन्यास इस तरह छपते हैं। आवरण चित्र के ऊपर बात करने से पहले चलिए आवरण चित्र को देखते हैं।</div><span><a name='more'></a></span><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
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<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhI1mfQirpJjywdkKYhJZmMgitwYRZxv7vxboNzwNQVfaDtjfrjf1F6BFEtNsZOiCJNszBe-LC7wlbNIWKf4sYIB1rffp04TLENvt3gZHDwV9iZadWArOCKWqczn4NZ7Jn9rR4X-daFW8Y/s1600/%25E0%25A4%25AC%25E0%25A4%25A6%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25BE2.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="922" data-original-width="600" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhI1mfQirpJjywdkKYhJZmMgitwYRZxv7vxboNzwNQVfaDtjfrjf1F6BFEtNsZOiCJNszBe-LC7wlbNIWKf4sYIB1rffp04TLENvt3gZHDwV9iZadWArOCKWqczn4NZ7Jn9rR4X-daFW8Y/s640/%25E0%25A4%25AC%25E0%25A4%25A6%25E0%25A4%25B2%25E0%25A4%25BE2.jpg" width="412" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">बदला</td></tr>
</tbody></table>
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<br />
आवरण चित्र में मुख्य रूप से तीन चीजें बनी हुई हैं। उपन्यास के बायीं तरफ एक मर्द बना हुआ है। मर्द की एक आँख जो दिख रही है वो लाल हो रखी है। उसके होंठों में एक एक सिगरेट दबी हुई है और चेहरे पर क्रोध के भाव हैं। ऐसा लग रहा है जैसे या तो वो नशे में है या वो रोकर हटा है जिस कारण आँख लाल है। आवरण चित्र के बीच में एक हाथ बना हुआ है जिस पर साइकिल की चैन लिपटी हुई है जो कि होने वाली हिंसा का द्योतक है। आवरण देखकर आप सोच में पड़ जाते हैं कि क्या इसी हाथ द्वारा की गयी हिंसा का बदला लिया जा रहा है या यह चैन को लपेटे हुए जो हाथ है वह बदला लेने वाले का है। आवरण चित्र के दायीं तरह एक औरत का चित्र है। औरत घबराई हुई लग रही है। चित्र देखकर ही मन में प्रश्न उठता है कि यह औरत क्यों घबराई हुई है। आखिर इसके साथ ऐसा क्या हुआ था कि यह ऐसे घबरा गयी है। क्या बदला लेने वाले से इस औरत का सम्बन्ध है? आखिर बदला किस चीज का लिया जा रहा है और इन तीनों पात्रों में क्या सम्बन्ध है?<br />
<br />
उपन्यास के आवरण को देख सहज ही ऊपर दिए गये ख्याल मन में उत्पन्न हो जाते हैं। उपन्यास में बढ़े बढ़े अक्षर में लिखा गया शीर्षक और लेखक का नाम तो मौजूद है ही लेकिन शीर्षक के नीचे छोटे छोटे शब्दों में लिखा गया है कि उपन्यास <b>जगत सीरीज</b> का उपन्यास है। मैंने आज तक <b>जगत सीरीज</b> को नहीं पढ़ा लेकिन जो <b>जनप्रिय लेखक</b> <b>ओम प्रकाश शर्मा </b>जी को पढ़ते आये हैं वो उनके इस पात्र से वाकिफ होंगे और इस सीरीज का नाम पढ़कर और इस आवरण चित्रों में दी गयी तस्वीर देखकर कहानी का एक खाका तो उनके दिमाग में आ ही जाता होगा। इस लिहाज से यह आवरण मुझे तो अच्छा लग रहा है। यह उपन्यास के प्रति कोतुहल जगाता है।<br />
<br />
<br />
आवरण के दायें तरफ कोने में कासिम नाम दर्ज है जो कि शायद इस आवरण चित्र बनाने वाले कलाकार का होगा। यह मेरा अंदाजा ही है। अगर आपको इन चित्रकार के विषय में कुछ पता है तो मुझे जरूर बताइयेगा। यह आवरण आपको कैसा लगा और इस आवरण को देखकर आपका कथानक के प्रति कोतुहल जगा या नहीं यह भी मुझे जरूर बताइयेगा।<br />
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<b><span style="color: red;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></div>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-21043833918279889872020-02-10T12:56:00.001+05:302020-11-22T20:00:34.507+05:30आवरण चित्र: अटैची रहस्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जब से मेरा सत्यजित राय के किरदार फेलूदा से परिचय हुआ है उसके हर एक कारनामे को पढ़ने की इच्छा मेरे मन में बलवती सी हो गयी है। अक्सर मैं खुद को अमेज़न में सत्यजित राय की पुस्तकें सर्च करते हुए पाता हूँ और अगर कभी सत्यजित राय की किताबें हिन्दी में मिल जाती हैं तो उन्हें बिना किसी देरी के मँगवा देता हूँ। हिन्दी में सत्यजित राय की पुस्तकें कम ही उपलब्ध हैं और व्यक्तिगत तौर पर अन्य भारतीय भाषाओं में लिखी पुस्तकों के अंग्रेजी अनुवाद के बजाय हिन्दी अनुवाद पढ़ने में मुझे ज्यादा आनंद आता है। जब हिन्दी अनुवाद नहीं मिलते हैं और मिलने की उम्मीद ही नहीं होती है तो मैं अंग्रेजी के अनुवाद को तरजीह देता हूँ।<br />
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ऐसे ही मुझे रेमाधव प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सत्यजित राय की किताबों के विषय में पता चला था और मैंने मँगवा ली थी। रेमाधव प्रकाशन से प्रकाशित सत्यजित राय के उपन्यासों की खासियत इनके सादे आवरण चित्र होते हैं। अक्सर जासूसी उपन्यासों के आवरण चित्र चटक रंगों में बनाये जाते हैं। उन आवरण चित्र में अक्सर लड़कियाँ या कुछ एक्शन होते दर्शाया जाता है लेकिन रेमाधव से प्रकाशित इन उपन्यासों में ऐसा नहीं है। </div>
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अभी हाल फिलहाल में मैंने इसी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास अटैची रहस्य पढ़ने के लिए उठाया। अटैची रहस्य फेलूदा श्रृंखला का सातवाँ उपन्यास है। रेमाधव प्रकाशन द्वारा प्रकाशित अन्य पुस्तकों की तरह इस पुस्तक का आवरण चित्र भी सादा परन्तु रोचक है। </div>
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<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4nPkVaoqRA7GrBSbvH73LNZ4OOqn9MFB895WK8xeUGZftKZ6ev5tCWmi8XHylhvUl3rIyohhPhvQeQcSWKLjEXEy69iNMBXcRsxpxwSIDVIWqbAjkXxAfvHFTohRtS0zVFABehsS336s/s1600/attachirahasya.jpg" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="498" data-original-width="800" height="245" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4nPkVaoqRA7GrBSbvH73LNZ4OOqn9MFB895WK8xeUGZftKZ6ev5tCWmi8XHylhvUl3rIyohhPhvQeQcSWKLjEXEy69iNMBXcRsxpxwSIDVIWqbAjkXxAfvHFTohRtS0zVFABehsS336s/s400/attachirahasya.jpg" width="400" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">अटैची रहस्य - सत्यजित राय</td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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आवरण के तौर पर अटैची रहस्य में एक सफेद बैकग्राउंड पर एक छोटा सा रेखा चित्र बनाया गया है। </div>
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इस रेखा चित्र में एक वृद्ध व्यक्ति टाइप राइटर के समक्ष बैठा हुआ, पाइप पीते हुए कुछ लिखता सा प्रतीत होता है। वहीं दरवाजे से हाथ जोड़े दो युवा अंदर आते दिखते हैं। यह युवा कौन हैं? इसका अंदाजा अगर मुझे लगाना पड़े तो मैं कहूँगा कि जरूर ये फेलूदा और तोपसे होंगे। वहीं आवरण चित्र देखकर मन में कुछ और प्रश्न भी आते हैं। यह पाइप पीते हुए जो बुजुर्ग हैं वो कौन हैं? वह टाइप राइटर पर क्या लिख रहे हैं? तोपसे और फेलूदा ही अगर ये युवा हैं तो ये क्यों इन बुजुर्ग के पास आये हैं? क्या कोई नया केस इन्हे इन बुजुर्ग के पास खींच लाया है? अगर ऐसा है तो वह केस क्या है? </div>
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चूँकि उपन्यास का नाम अटैची रहस्य है तो इस बात का अंदाजा तो हो ही जाता है कि उपन्यास में कहीं न कहीं अटैची का होना लाजमी है। फिर यह प्रश्न भी मन में उठना लाजमी है कि यह किसकी अटैची है और इसके पीछे रहस्य क्या है?</div>
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सादे से दिखने वाले इस आवरण चित्र को गौर से देखें तो आपके मन में यह कई प्रश्न जगाता है जिसका उत्तर पाने के लिए आप इस उपन्यास को जरूर पढ़ना चाहेंगे। यह आवरण यह भी साबित करता है कि एक रोचक आवरण चित्र के लिए आपको ज्यादा तामझाम की जरूरत नहीं होती है।</div>
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आपका इस आवरण चित्र के विषय में क्या ख्याल है? क्या यह आपके मन में रूचि जगाता है?</div>
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बताइयेगा जरूर। </div>
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किताब आप निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:<br />
<a href="https://amzn.to/38dT7mP" target="_blank">पेपरबैक</a></div>
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<b><span style="color: red;">&copy; विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></div>
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विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-91055025140257778382020-01-09T20:56:00.002+05:302020-01-09T21:06:31.575+05:30आवरण चित्र: गढ़ी के खंडहर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJKaT1eM7LP70sJP45Xsi3-JoC6RtH3HkBPn23v67sg2L7Bql15YycPFJam7QY9Sdd7byGI8RueeyCiyBhI_qh617kNyuDFVo_BS0g958T97tAjAp1mPwZQzhBjvhS1IVaj-SC2vMbNiI/s1600/resizegadhikekhandhar.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="534" data-original-width="800" height="266" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgJKaT1eM7LP70sJP45Xsi3-JoC6RtH3HkBPn23v67sg2L7Bql15YycPFJam7QY9Sdd7byGI8RueeyCiyBhI_qh617kNyuDFVo_BS0g958T97tAjAp1mPwZQzhBjvhS1IVaj-SC2vMbNiI/s400/resizegadhikekhandhar.jpg" width="400" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">गढ़ी के खंडहर - राजनारायण बोहरे</td></tr>
</tbody></table>
कहा जाता है फर्स्ट इम्प्रैशन इस द लास्ट इम्प्रेशन। कई लोग इस बात को मानते भी हैं। कई मामलों में यह सत्य भी होता है। हम किसी चीज का अनुभव करते हैं तो पहले अनुभव से हम उस चीज के प्रति अपनी धारणा बना भी देते हैं। फिर वह अनुभव चाहे किसी नये व्यक्ति से मिलने का हो या किसी चीज को पहली बार देखने का।<br />
<br />
लेकिन फिर जीवन में कई लोग और चीजें ऐसी मिलती हैं जो पहली दफा तो आपको प्रभावित नहीं करती हैं लेकिन अगर आप उनके पास दोबारा जाओ तो तब जाकर उनका प्रभाव आप पर असर डालता है।<br />
<br />
ऐसा ही अनुभव मुझे <b>'गढ़ी के खंडहर'</b> के आवरण चित्र के साथ हुआ। जब पहली बार बुक फेयर में मैंने इसे देखा तो मुझे यह साधारण लगा। किताब में काफी गहरे रंगों का प्रयोग था। मुझे आवरण चित्र ने आकर्षित नहीं किया और मैंने इसे नहीं लिया। इसके जगह मैंने कुछ और किताबें ले ली थीं।<br />
<br />
वहीं मेरे मित्र को यह कवर पसंद आया तो उन्होंने इसे ले लिया। मेरे दोस्त फिलहाल मेरे साथ ही रह रहे हैं तो इस कारण मुझे इस किताब को दोबारा देखने का मौक़ा मिला तो और इस दोबारा हुई मुलाकात में इसने मुझ पर असर डाला। कवर को गौर से देखने पर मैंने पाया कि इसमें रात का एक दृश्य दिखाया जा रहा है।<br />
<br />
गहरी अँधेरी रात है। एक किला नुमा जगह है और आवरण चित्र के नीचे की तरफ दायें कोने में दो व्यक्ति गुत्थमगुत्था हो रखे हैं। एक व्यक्ति दूसरे पर प्रहार करता सा दिखता है। नीले काले रंग का संयोजन काफी अच्छा बन पड़ा है। कोने में मौजूद व्यक्ति कवर को रहस्यमयी बनाते हैं।<br />
<br />
शीर्षक चूँकि गढ़ी का खंडहर था तो मुझे यह तो अंदाजा था कि यह गढ़ी के खंडहर का ही दृश्य है। <b><i><span style="color: red;">लेकिन यह दो व्यक्ति कौन हैं और ये क्यों लड़ रहे हैं? इतनी रात गये यह लोग इस खंडहर में क्या कर रहे हैं?</span></i></b><br />
<br />
यह सब सवाल इस आवरण चित्र को देखकर अचानक से मन में आते हैं। इस कवर का सबसे जरूरी हिस्सा यही दो आपस में लड़ते हुए व्यक्ति हैं। यही वो हिस्सा हैं जिसे मैंने जब पहली बार कवर उठाया था तो जल्दबाजी में नहीं देखा था लेकिन जब दूसरी बार उठाया तो देखा और इस कारण इस आवरण चित्र को मैंने आकर्षक पाया।<br />
<br />
सवालों के जवाब तो मुझे किताब पढ़कर मिल ही जाने थे। लेकिन, ये बात तो तय हो गयी थी कि कभी कभार आप किसी चीज को ठहर के देखो या दूसरी बार देखो तो यह आपको आकर्षित कर देती है।<br />
<br />
अगर जल्दबाजी में देखो या पहली बार देखो तो ऐसी कई पहलू होते हैं जिन पर आपका ध्यान नहीं जाता और आप उनके प्रति गलत राय भी बना सकते हैं।<br />
<br />
इसके ऊपर आपका क्या सोचना है?<br />
<br />
आवरण चित्र मुझे तो पसंद आया। आपका क्या ख्याल है?<br />
<br />
<b><span style="color: red;">©विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></div>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-71024686350202299292019-12-28T11:11:00.001+05:302019-12-28T11:24:17.506+05:30आवरण चित्र: जुआघर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><img border="0" height="366" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHguKphKhMnKKEQ7z54EpdeH3GV6tOd9o4gv_UfGpdf3SEIkmNPKZ2ePkW4zwb-OOdP3ZLqX8gJNecEy0WvowM_gR0i5eF9kN1lufbZYA5xyqhnxF0SeX1sGs1GGmYNSEpxwKuR1WubyQ/s400/1577510556011838-0.png" style="margin-left: auto; margin-right: auto;" width="400" /></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">जुआघर</td></tr>
</tbody></table>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhHguKphKhMnKKEQ7z54EpdeH3GV6tOd9o4gv_UfGpdf3SEIkmNPKZ2ePkW4zwb-OOdP3ZLqX8gJNecEy0WvowM_gR0i5eF9kN1lufbZYA5xyqhnxF0SeX1sGs1GGmYNSEpxwKuR1WubyQ/s1600/1577510556011838-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
</a>
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<b><span style="font-size: x-large;">हि</span></b>न्दी पल्प उपन्यासों के आवरण चित्र मुझे हमेशा से ही आकर्षित करते रहे हैं। विशेषकर पुराने वक्त के उपन्यास जिनके कवर किसी पेंटिंग से कम नहीं होते थे।<br />
<br />
उन दिनों कलाकार को उपन्यास का कवर बनाने के लिए कहा जाता था तो बाकायदा पेंटिंग पेंट करता था। उस वक्त कलाकार काम होता था कि वह ऐसा आवरण चित्र तैयार करे कि पाठक आवरण चित्र देखकर ही पुस्तक खरीदने को आतुर हो। आवरण देखकर उसके मन में कथानक पढ़ने की इच्छा जागृत हो जाये। </div>
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<br /></div>
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यही कारण है कि जहाँ पहले उपन्यासों के कथानक के हिसाब से कवर बनते थे वहीं आगे चलकर आवरण चित्रों में आकर्षक बालाओं की मौजूदगी बढ़ने लगी। भले ही उपन्यास में उत्तेजक सामग्री न हो लेकिन किताबो के आवरण में उत्तेजक बालाएं भी आने लगी। लेकिन फिर मंदी का दौर आया। डिजिटाईजेशन का दौर आया। और इस दौर में आवरण बनाने के खर्चे को कम करने के लिए प्रकाशकों ने नई तरकीब निकाली। अब वह टुकड़े आर्टिस्ट से बनवाते हैं और फिर उन विभिन्न टुकड़ों को अलग अलग तरह से डिजिटली मॉडिफाई करके अपने कवर के लिए प्रयोग में लाते हैं। इससे उन्हें फायदा यह होता है कि एक टुकड़े को बनाने के पैसे तो एक बार देते हैं लेकिन उसका इस्तेमाल असंख्य बार, असंख्य आवरण चित्रों में कर सकते हैं।</div>
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<br /></div>
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उपरोक्त कवर भी ऐसे ही तरीके से बनाया लगता है। कवर में एक स्त्री है, एक पुरुष है जिसके हाथ मे गन है और एक कैसिनो यानी जुआघर है। तीनों अलग अलग तत्व हैं जिन्हें बाद में शीर्षक के हिसाब से जोड़ा गया है। अगर आप राजा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित अन्य उपन्यास देखेंगे तो शायद यह स्त्री और वह पुरुष दूसरे आवरण चित्रों में भी मिल जायें।<br />
<br />
कवर की बात करूँ तो इन तत्वों को देखकर साफ़ प्रतीत होता है कि यह कथानक किसी जुयेघर के इर्द गिर्द बुना गया है। शीर्षक भी चूँकि जुआघर है तो पाठक के रूप में मेरे मन में यह विचार पुख्ता हो जाता है कि उपन्यास का कथानक इसी जुआघर के इर्द गिर्द बुना गया होगा।</div>
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<br /></div>
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कवर में कुछ पंक्तियाँ भी दर्ज हैं :</div>
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<br /></div>
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<b><i>जगमोहन कसीनो में डकैती की तैयारी कर रहा था और देवराज चौहान की नज़र उस पर थी। साजिश का जाल हर तरफ बिछा हुआ था।</i></b></div>
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यह तहरीर और कवर में दर्ज किया देवराज चौहान सीरीज यह दर्शाने के लिए काफी है कि प्रस्तुत उपन्यास देवराज चौहान श्रृंखला का है। देवराज को जो पढ़ते हैं वो जानते हैं कि देवराज डकैती मास्टर है तो वह अंदाजा लगा सकते हैं कि इस उपन्यास में जुआघर में ही डकैती होगी। हाँ, फर्क बस यह है कि इस बार देवराज तैयारी नहीं कर रहा है। वह केवल नज़र रख रहा है। तैयारी जगमोहन कर रहा है जो कि दूसरे उपन्यासों में देवराज के लिए काम करता प्रतीत होता है।</div>
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कवर में एक और बिंदु है जो मुझे आकर्षित कर रहा है। इसमें एक स्त्री बनी हुई है। इससे मन में एक प्रश्न तो उठता है। वह यह कि क्या इस उपन्यास में कोई स्त्री अहम भूमिका में है। अगर हाँ, तो उसका क्या रोल रहेगा। या फिर कवर को आकर्षित बनाने के लिए ही स्त्री का प्रयोग किया गया है। वहीं एक प्रश्न ये भी है कि यह पुरुष कौन है? इसके हाथ में बंदूक क्यों है? क्या यह जगमोहन है या कोई अन्य व्यक्ति? इसका इस स्त्री से क्या रिश्ता है?</div>
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<br /></div>
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खैर, यह सब तो उपन्यास पढ़ने के पश्चात ही पता चलेगा। कवर के विषय में यही कहूंगा कि डिजिटल रूप से मॉडिफाई किये हुए ऐसे कवर मेरे पसंदीदा नहीं रहे हैं। अगर इस उपन्यास का आवरण चित्र भी पेंट करवाया गया होता तो वह असर डालता लेकिन फिर भी यह कवर मुझे उतना बुरा नहीं लगा। इस कवर की खास बात यह है कि इसके तत्वों को कथानक के हिसाब से जोड़ा गया है। इस बात के लिए ही कवर डिज़ाइनर की तारीफ़ बनती है वरना तो आजकल कई उपन्यासों में कवर का उपन्यास के कथानक से दूर दूर तक लेना देना नहीं होता है।<br />
<br />
आपको किस तरह के आवरण चित्र पसंद हैं: पुराने वक्त के पेंट किये हुए या आज के डिजिटल रूप से बनाये गये? </div>
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<br /></div>
<div>
<b><span style="color: red;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></div>
</div>
</div>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-86010874686706279762019-12-20T13:12:00.002+05:302019-12-20T15:45:30.186+05:30आवरण चित्र : लाल रेखा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi83eMcTTHOyQvVEd5tEeOcSOvuvwat_NLwDlCUVOGkk2zXPwt9M-7BOXj9qqDHW1g0q1a6edsGVdcH9WWl-N3xgk3M9Dg3Iov0BJi5_X-W3mWp_OgNLqc5IqwV5YQlsw42cy5lR9v1Rp0/s1600/laalrekha.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img alt="लाल रेखा - कुशवाहा कांत " border="0" data-original-height="860" data-original-width="780" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi83eMcTTHOyQvVEd5tEeOcSOvuvwat_NLwDlCUVOGkk2zXPwt9M-7BOXj9qqDHW1g0q1a6edsGVdcH9WWl-N3xgk3M9Dg3Iov0BJi5_X-W3mWp_OgNLqc5IqwV5YQlsw42cy5lR9v1Rp0/s640/laalrekha.jpeg" title="लाल रेखा - कुशवाहा कांत " width="580" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">पिक्चर क्रेडिट: सुजाता देवराड़ी</td></tr>
</tbody></table>
लाल रेखा के विषय में मैंने तब पढ़ा था जब मैं हिन्दी पल्प उपन्यासों के विषय में लिखे लेख खोज खोज कर पढ़ता था। फिर एक लेख कुशवाहा कान्त के विषय में भी पढ़ने को मिला और उन लेखों से भी किताबों की मकबूलियत का अहसास हुआ। मन में लाल रेखा पढ़ने की इच्छा जागी थी लेकिन चूँकि उपन्यास काफी वक्त से आउट ऑफ़ प्रिंट था तो इस क्षुधा को शांत करने के लिए मैं कुछ नहीं कर सकता था। रमाकांत जी ने <a href="http://jasoosisansar.blogspot.com/2018/01/blog-post.html" target="_blank">जासूसी संसार </a>के माध्यम से इसका स्कैन पढ़ने की व्यवस्था भी की थी लेकिन स्कैन पढ़ने में वो मज़ा नहीं आता है जो किताब हाथ में लेकर पढ़ने में आता है।<br />
<br />
ऐसे में जब अमेज़न पर तफरी करते हुए बरबस ही इस आवरण चित्र ने मुझे अपनी तरफ आकर्षित किया तो मेरा हैरान होना लाजमी था। इस आवरण में रंगों को जो संयोजन है वह आपकी दृष्टि अपनी तरफ खींच लेता है। जिस लाल रेखा की मुझे तलाश थी वो आखिर पुनः प्रकाशित हो गयी थी। इसलिए बिना वक्त गँवाये मैंने इसे खरीद लिया था।<br />
<br />
चूँकि यह ब्लॉग पुस्तक के आवरण चित्रों के ऊपर ही है तो अब मैं उपन्यास की बात न करके इसके आकर्षक आवरण चित्र की ही बात करूँगा।<br />
<br />
इस आवरण चित्र को आप गौर से देखें तो मुख्य रूप से आपको दो किरदार दिखते हैं। एक स्त्री और एक पुरुष। आवरण देखकर ही लगता है कि कथानक इन्हीं दो किरदारों के इर्द गिर्द घूमता है। मुझे यह पता है कि पुरुष का नाम लाल है और स्त्री का नाम रेखा है। लेकिन जिस तरह से शीर्षक को लिखा गया है उससे साफ लगता है कि एक लाल रेखा अन्य भी है जो इन्हे विभाजित कर रही है।इन्हे अलग कर रही है।<br />
<br />
किरदारों के अतिरिक्त काफी लोग हैं जो आउट ऑफ़ फोकस है। यह आउट ऑफ़ फोकस चित्र स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने वाले लोगों की याद दिलाता है। इसका आवरण में होना भी यह दर्शाता है कि इस आंदोलन का इन मुख्य किरदारों के जीवन में कुछ न कुछ असर पड़ता होगा।<br />
<br />
<b><span style="color: red;">क्या यह आंदोलन ही वह रक्त रंजित लाल रेखा है जो इनके अलगाव का कारण बनेगी?? आखिर कौन हैं ये स्त्री और पुरुष? इनका इस आंदलोन से क्या लेना देना है?</span></b><br />
<br />
ऐसे ही कई प्रश्न केवल इस आवरण को देखने भर से आपके मन में उभरेंगे। इसके लिए आपको उपन्यास की कथावस्तु से परिचित होने की आवश्यकता नहीं है। एक अच्छा आवरण चित्र यही काम करता है। वह किताब के कथानक के प्रति एक संकेत देता है। पाठक के मन में उस किताब के प्रति कौतूहल जगाता है।<br />
<br />
इसलिए उपन्यास कैसा होगा यह तो इसे पढ़ने के बाद में पता चलेगा लेकिन आवरण चित्र बनाने वाली <b><span style="color: blue;">अर्चना जैन</span></b> जी बधाई की पात्र हैं।<br />
<br />
मेरे नज़र में यह एक अच्छा आवरण चित्र है।<br />
<br />
<br />
लाल रेखा के ऊपर लिखा लेख जिसने मेरी रूचि इस उपन्यास के प्रति जगाई थी:<br />
<a href="https://pedestrianpenpusher.wordpress.com/2017/04/22/%e0%a4%b2%e0%a4%be%e0%a4%b2-%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%96%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%81%e0%a4%b6%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b9%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%a8%e0%a5%8d%e0%a4%a4/" target="_blank">लाल रेखा </a><br />
<br />
कुशवाहा कान्त जी के ऊपर लिखा लेख जिसने मेरी रूचि कुशवाहा कान्त और उनके उपन्यासों के प्रति जगाई थी:<br />
<a href="https://kushvani.blogspot.com/2016/11/blog-post_30.html" target="_blank">कुशवानी</a><br />
<br />
<br />
<b><span style="color: red;">© विकास नैनवाल 'अंजान'</span></b></div>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-24785980985908773812019-12-03T14:20:00.000+05:302019-12-03T14:32:33.678+05:30आवरण चित्र: हंडिया भर खून<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नानक सिंह पंजाबी के जाने माने उपन्यासकार हैं। उनकी कुछ किताबें हिन्दी में अनुवादित कर मनोज पब्लिकेशनस द्वारा प्रकाशित की गयी हैं जिनके आवरण चित्रों ने मेरा ध्यान आकर्षित किया था। हंडिया भर खून उनकी ऐसी ही एक किताब है। यह मूल रूप से पंजाबी में लिखी है। इसका आवरण चित्र भी मुझे आकर्षक लगा था। इस पोस्ट में इसी के ऊपर बात करूँगा।<br />
<br />
पहले आप आवरण चित्र देखिये:<br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7wiC_bMgh_elvjqFceUpJepT_-eP_1N8Spxr2odJWiqyg5_9mFbleSVcFg4FGQe2LOH_S0Ws78nlY77hhmK1OG-sEEgryT8EOhqWFt3tFW1sNNhTxqlCFaSuEwp28D1_vYCut6ebdKH4/s1600/handiyabharkhoon.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="320" data-original-width="211" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh7wiC_bMgh_elvjqFceUpJepT_-eP_1N8Spxr2odJWiqyg5_9mFbleSVcFg4FGQe2LOH_S0Ws78nlY77hhmK1OG-sEEgryT8EOhqWFt3tFW1sNNhTxqlCFaSuEwp28D1_vYCut6ebdKH4/s640/handiyabharkhoon.jpg" width="422" /></a></div>
<br />
है न आकर्षक आवरण चित्र। आवरण पुराने पल्प उपन्यासों की याद दिलाता है। इसमें तीन चार किरदार आप आराम से देख सकते हैं। मुख्य रूप से एक स्त्री का किरदार है जो दुखी लग रही है। उसके बगल में एक खूबसूरत युवक का चित्र है जिसके चेहरे से दृढ़ता का भाव झलकर रहा है। वहीं नीचे कोने एक पंडित, एक मुस्लिम और दाढ़ी वाला किरदार बनाया गया है। इनके सब के साथ एक चित्र भी है जिसमें लोग किसी संघर्ष में भाग लेते से प्रतीत होते हैं।<br />
<br />
इस आवरण को देखकर आपके मन कई तरह के प्रश्न उठते हैं?<br />
<br />
यह स्त्री दुखी क्यों है?<br />
<br />
यह युवक अपने किस मकसद के प्रति दृढ़ है?<br />
<br />
यह तीन अलग अलग धर्मो के दिखने वाले लोग किस बात का प्रतीक हैं? क्या यह उपन्यास धार्मिक सौहार्द को लेकर लिखा गया है?<br />
<br />
यह लोग किस बात के खिलाफ संघर्षरत हैं?<br />
<br />
मेरे मन में तो इस चित्र को देखने के बाद यह प्रश्न उठते हैं। फिर शीर्षक पर नज़र डालता हूँ तो एक प्रश्न और उठता है कि यह हंडिया भर खून का क्या चक्कर है?<br />
<br />
जब पहली बार इस कवर को देखा था तो ऐसे ही प्रश्न अवचेतन मन में शायद उभरे थे। यही कारण था कि शायद इसे झट से खरीद लिया था।<br />
<br />
2017 में मैंने उपन्यास पढ़ा था और मुझे उस वक्त बहुत पसंद भी आया था। उपन्यास के प्रति मेरे विचार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:<br />
<a href="https://www.ekbookjournal.com/2017/11/Handiya-Bhar-Khoon-by-Nanak-Singh.html" target="_blank">हंडिया भर खून</a><br />
<br />
आपको यह आवरण चित्र कैसा लगा? क्या इस आवरण ने किताब के प्रति आपकी उत्सुकता को जागृत किया है? क्या आपने इस किताब को पढ़ा है और क्या यह आवरण चित्र किताब के अनुसार है? मेरे हिसाब से तो किताब के कथानक के अनुरूप ही इस आवरण चित्र का निर्माण हुआ है।<br />
<br />
अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाइयेगा। </div>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-32454397607125588482019-11-12T12:29:00.001+05:302019-11-12T12:41:41.436+05:30न आने वाला कल - आवरण<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
वैसे तो यह ब्लॉग पल्प उपन्यासों के आवरण चित्रों के लिए बनाया था लेकिन अब सोचा ही कि हर तरह के साहित्य के आकर्षक आवरण इधर डाला करूँगा। पिछले दिनों अमेज़न में विचरण करते हुए कुछ उपन्यासों के आवरणों ने बरबस ही मेरी नज़र अपनी और खींची। उन्हीं के विषय में जब मन होगा इधर लिखा करूँगा। </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
सबसे पहले जिस उपन्यास का कवर मुझे पसंद आया वो मोहन राकेश का उपन्यास <b>ना आने वाला कल</b> का आवारण है।</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
उपन्यास हिन्द पॉकेट बुक्स जो कि अब पेंगुइन ने ले लिया है से आया है। हिन्द से आने वाले काफी उपन्यासों के आवरण काफी आकर्षक हैं। </div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: left;">
पहले तो आवरण देखिये।</div>
<a name='more'></a><br /><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDauKEv9fZC6EuZ24vormI4PMrkSPqqQJFJX72GW4JWhi7of0dLzAnrmAktbQkusLKJuwp4s4TCKe-4K5r97KSyQTedavvCcQBeXpHhquM-5LlDb6jEmExGCrEJ9gioHEJnKe5wUnqC0Y/s1600/naanewalakal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1038" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDauKEv9fZC6EuZ24vormI4PMrkSPqqQJFJX72GW4JWhi7of0dLzAnrmAktbQkusLKJuwp4s4TCKe-4K5r97KSyQTedavvCcQBeXpHhquM-5LlDb6jEmExGCrEJ9gioHEJnKe5wUnqC0Y/s400/naanewalakal.jpg" width="256" /></a></div>
<br />
है न सुन्दर सा कवर? कवर में एक पुरुष है हो कुर्सी पर बैठा कुछ सोच रहा है और एक नारी है जो तिरीछी नज़रों से पाठक को देखती सी प्रतीत हो रही है। ऐसा लग रहा है जैसे वह आपको अपने जीवन में आमत्रित करना चाहती है। यह नारी कौन है और उसका इस पुरुष से क्यारिश्ता है? यह पुरुष किस सोच में डूबा है? क्या इनके जीवन में सब कुछ ठीक है? क्या यह नारी पाठक से अपने मन की बात कहना चाहती है? ऐसे कई प्रश्न पाठक के रूप में मेरे मन में इस कवर को देखते हुए उठ रहे हैं? फिर इस आवरण का चटक रंग भी आपकी नज़रों को अपने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर कर देता है।<br />
<br />
यह कवर मुझे पसंद आया था और मैंने इस किताब को ले लिया था।<br />
<br />
रोचक बात यह है कि मैंने <a href="https://www.ekbookjournal.com/2017/05/Na-Aane-Wala-Kal-by-Mohan-Rakesh.html" target="_blank">न आने वाले कल</a> (लिंक पर क्लिक करके आप मेरी राय जान सकते हैं।) को काफी पढ़ लिया था लेकिन जिस संस्करण को मैंने खरीदा था उसका कवर इतना आकर्षक नहीं था। यह कवर ज्यादा आकर्षक है और हो सकता है इस कारण मैं इस किताब को दोबारा पढ़ लूँ।<br />
<br />
<table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;"><tbody>
<tr><td style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifrJm_-bDs_RqI_w0YJ_SdTuADw5HVI6fia8G068QUCPEBEqBbhLECkgBsZ1Xf1RMZAGktjOHMi7K_de55E0CY5MDy5ATIE12WfSLtrdE9S6IYaaXTV6K_2bhCxAZRgK8KSMCEIFjqG1Q/s1600/n+aane+wala+kal.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: auto; margin-right: auto;"><img border="0" data-original-height="471" data-original-width="300" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifrJm_-bDs_RqI_w0YJ_SdTuADw5HVI6fia8G068QUCPEBEqBbhLECkgBsZ1Xf1RMZAGktjOHMi7K_de55E0CY5MDy5ATIE12WfSLtrdE9S6IYaaXTV6K_2bhCxAZRgK8KSMCEIFjqG1Q/s320/n+aane+wala+kal.jpg" width="203" /></a></td></tr>
<tr><td class="tr-caption" style="text-align: center;">मेरे पास मौजूद पुराने संस्करण का कवर</td></tr>
</tbody></table>
<br />
<br />
क्या आपके पास भी एक ही किताब के ऐसे संस्करण मौजूद हैं जिन्हे आपने केवल आकर्षक कवर के चलते खरीदा है? अगर हैं तो बताइये मुझे भी।<br />
<br />
उपन्यास आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:<br />
<a href="https://amzn.to/2Kd9LZI" target="_blank">न आने वाला कल</a></div>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-86692902235971585862017-12-16T18:05:00.001+05:302019-11-12T14:07:18.780+05:30मेरी प्यारी बिंदु - फिल्म में उपन्यास के कवर्स <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वैसे तो ये ब्लॉग पल्प फिक्शन के कवर्स के लिए बनाया था लेकिन पिछले दिनों मेरी प्यारी बिंदु देखी और उसमे कुछ कवर्स देखे तो सोचा उन्हें भी इधर होना चाहिए। इस फिल्म में नायक एक पल्प साहित्य का लेखक होता है और उसके उपन्यासों के कवर मुझे बहुत पसंद आये थे। अगर आपने फिल्म नहीं देखी तो ज्यादा कुछ नहीं खोया है। हाँ, लेखक के उपन्यासों के लिए इस्तेमाल किये गये कवर काफी अच्छे हैं और उन्हें आप देखिये।<br />
<br />
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdYT7S41XhynDh1OnUrfnlGyF-dM0gQrV6KB-MvbIn5f8BKbPTyMbS4D3FxrwsYp6Q0D3GMW60kCaChDgwwlwNwIWLocWK5Hk60ec5WaqdJjV91Q814Byp61eg7Dlk0O-u-tdmeOUnjGw/s1600/IMG-20170913-WA0008.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="852" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhdYT7S41XhynDh1OnUrfnlGyF-dM0gQrV6KB-MvbIn5f8BKbPTyMbS4D3FxrwsYp6Q0D3GMW60kCaChDgwwlwNwIWLocWK5Hk60ec5WaqdJjV91Q814Byp61eg7Dlk0O-u-tdmeOUnjGw/s320/IMG-20170913-WA0008.jpg" width="213" /></a></div>
<br />
<a name='more'></a><br /><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjzL1QO4Ts-8tJ1_TOzy8rUK3cwZNzfLm3qT3N8W_xzyBk4ZmP-REHcNaJ81Hr-HDzS4Z2t87esavlIWldNpNdXPCrxnzIzE9l2LOmanwLR0l5FhJfZYnmSVYVc2dPKZakq1Aw1CgAfBas/s1600/IMG-20170913-WA0007.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="852" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjzL1QO4Ts-8tJ1_TOzy8rUK3cwZNzfLm3qT3N8W_xzyBk4ZmP-REHcNaJ81Hr-HDzS4Z2t87esavlIWldNpNdXPCrxnzIzE9l2LOmanwLR0l5FhJfZYnmSVYVc2dPKZakq1Aw1CgAfBas/s320/IMG-20170913-WA0007.jpg" width="213" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKoP3RkrhLL5-OPtljgY_JZRp9wcl_s4OAziwGmnzUsJowD9D0qtNvRzkLs3TpJARTdQEmnGkhgW_08LJtDECXrDV451HeCWd4580gnjRhtm4cYAD6AzCuc0h686goICvmo5fw_7ywqJw/s1600/IMG-20170913-WA0009.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="852" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKoP3RkrhLL5-OPtljgY_JZRp9wcl_s4OAziwGmnzUsJowD9D0qtNvRzkLs3TpJARTdQEmnGkhgW_08LJtDECXrDV451HeCWd4580gnjRhtm4cYAD6AzCuc0h686goICvmo5fw_7ywqJw/s320/IMG-20170913-WA0009.jpg" width="213" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAu5QF9_CQR8ypxnvfqvva6IE1EPUMXXSPPoLgIT8qXrFlfaYSay-bxeBgc39KlgC1uISeERCMN7ATFHDoNbWGOcsOFi9VAzzatQUB743FrSwiBU0rObOVR0kQPAbnJzgZlcEzkiqvkY8/s1600/IMG-20170913-WA0010.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="852" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjAu5QF9_CQR8ypxnvfqvva6IE1EPUMXXSPPoLgIT8qXrFlfaYSay-bxeBgc39KlgC1uISeERCMN7ATFHDoNbWGOcsOFi9VAzzatQUB743FrSwiBU0rObOVR0kQPAbnJzgZlcEzkiqvkY8/s320/IMG-20170913-WA0010.jpg" width="213" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUOMSp4wFcyz9ySkoUIIwDVE4QyrMyijTnDczQZIfDFh8EgLallFs_z7NPDkXRDxXAepL55f53jzwvSSDX7OpJH9y9nYNc9ySuFjgUFhBtC9sng-Iq0TRoTOU41g7wrBfrvMTYv4p548c/s1600/IMG-20170913-WA0011.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="852" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiUOMSp4wFcyz9ySkoUIIwDVE4QyrMyijTnDczQZIfDFh8EgLallFs_z7NPDkXRDxXAepL55f53jzwvSSDX7OpJH9y9nYNc9ySuFjgUFhBtC9sng-Iq0TRoTOU41g7wrBfrvMTYv4p548c/s320/IMG-20170913-WA0011.jpg" width="213" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5m6GhSj4Q9PXJJeLV3P2Ghg-lh_19q3RXDrRop9XxdGXNgOpl8nEU8l2z-5uCWO2uEayJhGV2d73bh1BR6fW2DLc1KYoS0YhxF0NnvkVXf2ImmnjZ4ixB76uyAC7gih77ceOBZlec7Zc/s1600/IMG-20170913-WA0012.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="852" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5m6GhSj4Q9PXJJeLV3P2Ghg-lh_19q3RXDrRop9XxdGXNgOpl8nEU8l2z-5uCWO2uEayJhGV2d73bh1BR6fW2DLc1KYoS0YhxF0NnvkVXf2ImmnjZ4ixB76uyAC7gih77ceOBZlec7Zc/s320/IMG-20170913-WA0012.jpg" width="213" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggawIVFWWzSWn2vh0y5EqH-rkRrVG70XofMak4cDKhbkYi_DAP2pRmnkcW3fY1MjKllU6nn5rWS1wGQr6J1QXUGEkxjx0HNqxlQ4LKXg78hbSQAbBRU3kaW0kTOn_Bguu60095pK0PdM8/s1600/IMG-20170913-WA0014.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1050" data-original-width="700" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEggawIVFWWzSWn2vh0y5EqH-rkRrVG70XofMak4cDKhbkYi_DAP2pRmnkcW3fY1MjKllU6nn5rWS1wGQr6J1QXUGEkxjx0HNqxlQ4LKXg78hbSQAbBRU3kaW0kTOn_Bguu60095pK0PdM8/s320/IMG-20170913-WA0014.jpg" width="213" /></a></div>
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZfmc9Rtldlkld2yofkDL-Kzrsm33OgFh5naR84OoJw11FDaK2HPvuU0BW57nr2uch3iFMpt0xSMlW8Nk31lcY1buPRb9lflTBtE8fPsrrIm_mSNowLbtf4yUxnYrtBbqcEEJS1YlOuN0/s1600/IMG-20170913-WA0015.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1066" data-original-width="720" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZfmc9Rtldlkld2yofkDL-Kzrsm33OgFh5naR84OoJw11FDaK2HPvuU0BW57nr2uch3iFMpt0xSMlW8Nk31lcY1buPRb9lflTBtE8fPsrrIm_mSNowLbtf4yUxnYrtBbqcEEJS1YlOuN0/s320/IMG-20170913-WA0015.jpg" width="216" /></a></div>
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कवर एक इलस्ट्रेटर सौमिन सुरेश पटेल ने बनाये हैं। आशा है वो और उपन्यासों के कुछ कवर्स बनायेंगे।<br />
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उनका ब्लॉग ये है।</div>
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<span style="font-family: sans-serif;"><a href="http://pictorialcinema.blogspot.in/" target="_blank">ब्लॉग </a></span></div>
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और उनका फेसबुक पृष्ठ ये है।<br />
<a href="https://www.facebook.com/sauminsureshpatel/" target="_blank">फेसबुक पृष्ठ</a><br />
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कवर्स कैसे हैं?? बताना नहीं भूलियेगा।<br />
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आपका तो पता नहीं लेकिन इन कवर्स को देखने के बाद मुझे वो उपन्यास पढ़ने की इच्छा है जिनके लिए ये कवर्स बनाये हैं। उम्मीद है कोई लेखक इस बिंदु पर विचार करेगा।</div>
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विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-74897634522364426942017-04-25T13:16:00.000+05:302017-04-25T13:16:15.135+05:30Book Cover of the Day(किस मी डेडली)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शुरुआत में मैंने ये निर्णय लिया था कि मैं हर दिन एक पल्प नावेल का कवर इधर पोस्ट करते रहूँगा। कुछ दिनों तक ऐसा चलता रहा लेकिन अब ऐसा रोज करना मुमकिन नहीं लग रहा है। इसलिए जिस दिन कोई ऐसा कवर दिख गया जिसे मैं समझता हूँ कि साझा करना जरूरी है उसे मैं उस दिन साझा कर लूँगा।<br />
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आज जिस कवर को मैं आपने समक्ष लेकर आया हूँ वो एक थीम पे बेस्ड है। मिक्की स्पिलेन के किरदार माइक हैमर के उपन्यासों को इस थीम के आवरण के साथ ओरियन ने प्रकाशित किया है। इन कवर्स ने मुझे अपनी तरफ काफी आकर्षित किया है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस साल मैं सारे उपन्यास ले लूँगा। वैसे भी माइक हैमर के उपन्यास मैं काफी दिनों से पढ़ना चाह रहा था। इन कवर्स ने इस इच्छा को और बढ़ा दिया है।<br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6jSXRn5HHsrn8H9VDuYtIF9IaYBirKPDBO-cf6Hag0KiJ8lNwV69LMe_TZE3JFpoyDIQFh3fJIQgqkPLXkMmJ7juL-cinvqGIwbAs9ty2zcPAjxMPu6XHCA0uR6pmIxk7y5-AmOh4qWY/s1600/kissmedeadly.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg6jSXRn5HHsrn8H9VDuYtIF9IaYBirKPDBO-cf6Hag0KiJ8lNwV69LMe_TZE3JFpoyDIQFh3fJIQgqkPLXkMmJ7juL-cinvqGIwbAs9ty2zcPAjxMPu6XHCA0uR6pmIxk7y5-AmOh4qWY/s320/kissmedeadly.jpg" width="205" /></a></div>
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आपका इसके विषय में क्या ख्याल है ?<br />
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जिसने भी इन्हे बनाया है वो तारीफ के हकदार हैं। </div>
विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6529358384633982544.post-71753278707618242412017-04-14T06:57:00.001+05:302017-04-14T06:57:39.871+05:30Book Cover of the Day(बॉडीगार्ड)<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy3fjyeHOUsqTl96Hk4Xf_2ghMTbs0BpyAa96aM5uRQlFP1mXSLrSu_AJ873UF4cic4k-iDfSM2hXCfdaeFz1lXnNUPX-1vZevqRuekt7CI6bwODrHMnuCV7hyE5uP33p7D3zPwOVUi5k/s1600/bodyguard.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgy3fjyeHOUsqTl96Hk4Xf_2ghMTbs0BpyAa96aM5uRQlFP1mXSLrSu_AJ873UF4cic4k-iDfSM2hXCfdaeFz1lXnNUPX-1vZevqRuekt7CI6bwODrHMnuCV7hyE5uP33p7D3zPwOVUi5k/s400/bodyguard.jpg" width="248" /></a></div>
शीर्षक : बॉडीगार्ड<br />
लेखक : टाइगर<br />
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कवर को अगर देखें तो इसमें एक लड़की बनी हुई है जिसके मुँह से खून निकल रहा है। एक फौजी सा दिखने वाला किरदार है। एक किरदार आँखों में चश्मा लगाए और बन्दूक थामे खड़ा है। उसके इलावा एक फेल्ट हैट में भी साया है। इन किरदारों का कहानी से क्या लेना देना है ये तो मुझे नही पता। लेकिन ये सब किरदार और शीर्षक मिलकर एक जिज्ञासा सी मन में उत्पन्न करते हैं। आपका क्या ख्याल है?<br />
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विकास नैनवाल 'अंजान'http://www.blogger.com/profile/09261581004081485805noreply@blogger.com0